सदियों सदियों से । अनादि काल से जगत की मूढ़ता देख क़र बेचारा परमात्मा भी हँस हँस क़र लोटपोट हुआ जा रहा होगा अपनी सृष्टि अपने ही हाथों से रचे हुए लोग दुनिया भर की नासमझींयों और बेवकूफीयों मे संलग्न.. क्या गजब की मज़ाक़ है वह निश्चित ही ठहाक़े लगा रहा होगा यदि हम हंसने क़े बाद मौन मे डूबे तो एक दिन परमात्मा की हंसी भी हम सुन लेंगे पूरे अस्तित्व को हँसते हुए सुन लेंगे ये वृक्ष ये पथ्हर ये चाँद तारे सब हँस रहे हैँ तो क्यों न हम भी इस जागतिक हास्य मे शामिल हो जॉय ©Parasram Arora जागतिक हास्य........