ग़ज़ल :- धुन दर्द ए दिल दर्दे ए जिगर 2122 2122 2122 212 जख्म़ पर मेरे अभी मरहम लगाया आपने । मैं तो बस रोता रहा हँसना सिखाया आपने ।। लड़खडाकर गिर रहे थे ये कदम उठते हुए । थाम कर उँगली मेरी चलना सिखाया आपने ।। हार जाता आज बाजी प्यार के मैदान में पर लगाकर आज सीने से जिताया आपने ।। प्यार की प्रतियोगिता में दौलतों का था चलन। हीर बनकर आज उसको भी मिटाया आपने ।। याद मुझको यार सब कुछ क्या किसे किसने दिया । हर सितम को उस सितमगर से छुपाया आपने ।। भूल कैसे आज जाऊँ मैं तेरे उपकार को । एक लेकर दिल मेरा दिल में बिठाया आपने ।। मैं समझता था जिसे भी आज तक अपना खुदा । उन खुदाओ से मुझे अब तक बचाया आपने ।। क्यों नहीं एतबार होता है किसी की बात पर । किसलिए दिल को मेरे जख्म़ी बनाया आपने ।। जान तक कुर्बान देखो उस प्रखर पे था किया । पर कभी भी हक नही अपना जताया आपने ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- धुन दर्द ए दिल दर्दे ए जिगर 2122 2122 2122 212 जख्म़ पर मेरे अभी मरहम लगाया आपने । मैं तो बस रोता रहा हँसना सिखाया आपने ।। लड़खडाकर गिर रहे थे ये कदम उठते हुए । थाम कर उँगली मेरी चलना सिखाया आपने ।। हार जाता आज बाजी प्यार के मैदान में