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हमरी प्रेम कहानी भाग 14 (समापन-1) ****************

हमरी प्रेम कहानी भाग 14 (समापन-1)
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बाबूजी आव-देखे न ताव सरपट लात हमरी छाती पे मारे। हम घोलट के दूर जा गिरे। उ लगे चिल्लाने....तुमरा कारण क्या क्या झेले हम सब। माई को खा गया। मंच पे क्या-क्या बोलके मेला का सत्यानाश कर दिया, कल उसका जवाब अलग देना होगा। घर से पैसा ले जाके प्रेमलीला में खर्च कर आया और मेरे माथे 1200 का इलाज का खर्च चढ़ा उसकी कोई चिंता नहीं। कल अगर पंचायत हुआ और एको आदमी हमको गलत-सही बोला त सबसे पहले हम तुमरी जान ही लेंगे
माई बीमार खटिये से लटकल थी और नवाब साब रासलीला का मंचन करने में व्यस्त रहे...
श्राद्ध के बाद अगर तुम इस घर मे नजर आए त काट के इहे आंगन में दफन कर देंगे। अब बैठ के मुँह का देख  रहे हो जाओ हरिया,गोलू,शंकर सब के बुला के लाओ।मोक्ष धाम भी त ले जाना है कंधा देके ।
हम उठके चल दिये। छोटकी गोईठे पे आग सुलगाने लगी। बाबूजी फुफकारते हुए व्यवस्था में लग गए।
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हरि चाचा...हो हरि चाचा....हम किबार का सांकल खटखटावे लगे। दस बार खटखटाए तब जाके हरि चाचा ताड़ी के नींद से जागे। धारी वाला हाफ पैंट पहिने निकले और ऐसे मुँह के तरफ देखे जैसे...वो सपने में रंभा के साथ ता-ता थैया गा रहे हो और हमरे चलते दखल हुआ हो।मुँह बिचका के बोले ...का है? काहे छटपटाए जा रहे हो। हम बोले माई स्वर्ग सिधार गई...बाउजी बुलाए है....अरे..रे बोलके वो संग हो गए। फिर बारी-बारी से गोलू और शंकर चाचा को साथ लिए।
सुबह की लाली घिरने लगी थी। माई को तुलसी के पास चचरी पे लिटा दिया गया था।छोटकी रोते हुए ही सारा व्यवस्था कर रही थी। बाबूजी के गाँजे का जोश ठंढा गया था सो कुर्सी धर बैठ गए थे।
सबके आ जाने पर बिचार-विमर्श शुरू हुआ। कैसे क्या करना है? लकड़ी कहाँ से लिया जाए?घीव का डब्बा कौन लाएगा? आदि-आदि
जैसे जैसे पड़ोसी जगते गए भीड़ बढ़ गया।
एकबारगी नवकी काकी पुकि पार के रोने लगी....अरे छोटकी के माय....अरे एतना का हड़बड़ी था जाने का....कुल अनाथ कर दी....के देखेगा ई दुगो लाल गुलाब के...चार और औरत सुर संगम में भीड़ गई।
तभी कुबड़ी दादी लुढ़कते हुए आगे आई...पछाड़ मारके लोट गई माई पे....आहे....कनिया....आहे के देगा मेरे हुक्का में आग गे... अरे के पूछेगा ई बुढ़िया को चाय गे... ई भगवान बड़ा निर्दयी है...हमका उठा लेते।
भीड़ में साड़ी से मुंह ढके एगो नवविवाहिता बोली....काकी कितनी अच्छी थी....सुहागन मरी....सबका ऐसा नसीब हो...अभियो चेहरे पे हंसी है।
शंकर चाचा आगे बढ़े सबको हटने कह कंधा देने के लिए बांकी सबको बुलाने लगे।
गोलू चाचा बोले...अरे रुको...एतना काहे हड़बड़ाए हो....लंबा प्रोग्राम है।चुनौटी में जेतना खैनी था उ दिलखुसवा के नाटके देखे में रगड़ा गया।डिब्बी भर लेने दो। ई जो लटा रहे इसको दाब के चलते है।
हरिया चाचा जम्हाई में मुँह फ़ाड़के हे राम बोले। बाउजी के तरफ देख के बोले कल शाम में बासी ताड़ी पिला दिया है तब से पेट ममोड रहा। नींदों नहीं आया। मेला से 2 बजे लौटवे किये,जब मार-धार होवे लगा था।
हमरे तरफ देख के बोले...अरे दिलखुसवा उ कौन छोड़ी मंच पे चढ़ गई थी...और का-का बके जा रहे थे अंतिम में तुम? सारा फसाद ओकरे बाद शुरू हुआ था। वैसे ई नाटक यादगार रहेगा सबको। सब मजा हुआ खिलाड़ी सब मंच पे उतरा था। खैर देखो आगे का होगा। लौटते वक्त देखे भोलन के द्वार पे दस लोग जमा होके पता नही क्या माफी,पंचायत का बात कर रहे थे।
हमरे मन मे आया माई से पहिले इसको ही लेटा के मुखाग्नि दे-दें।
ले दे के सब कंधा देने आ गए। अंतिम बार मेरे दिल मे हुक जैसा चुभा।माई विदा हो रही थी और पहली बार बाबूजी फफक-फफक के रोने लगे थे...बस मुँह से निकल रहा था...खूब साथ दी तुम,हमरे जैसा आदमी का...जिनगी भर निकम्मा रहे...एक बार मुँह तक नही खोली...बहुत दुःख दिए अब सुखी रहना....अब कौन हमरा ठाठ का ध्यान रखेगा?
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हम पीछे-पीछे आग लिए चल रहे थे। राम-नाम-सत्य है बोलते सब आगे जा रहे थे। घाट के तरफ बढ़े तो सिहर गए। ई घाट ने हमरा जिनगी,क्या से क्या कर दिया था। 
सब लकड़ी काटे में व्यस्त हो गया।हम बस उ पट्टी को देखते चिंता में डूबे रहे।
चिता सजाया गया। हमको आग देने के लिए आगे बुलाया गया। हमरा हाथ कांपने लगा। जिस माई के गोद मे खेले।छोटकी से झगड़ा कर बचने के लिए जिसके आंचल पीछे छुपे,बाबूजी से जो हमेशा हमको बचाती रही,हमेशा मुँह देख पूछती रहती थी कि तुमको भूख लगा है का? खाते हुए जो दो कौर हमेशा बुला के हमरे मुँह में ठूस देती थी,कभी कभी गर्मी में छत पे बगल में लेट के किस्सा सुनाती थी,आज के बाद उसको फिर कभी नही देख पाएंगे।
फिर से आंखे बरसने लगी।
तभी उ पट्टी सरोज नजर आई। हाथ मे फूल ले पानी मे विसर्जित की और अगरवत्ती जला घाट पे खोंस दी।हम समझ गए उ माई को श्रद्धांजलि दे रही थी।
कलेजा भर आया। आग की लपटें ऊंची उठ गई।चट-चट की आवाज के साथ माई विलीन होने लगी।
बाउजी घुटने पे हाथ रख बस एकटक देखे जा रहे थे।जैसे दो आत्माओं के विखंडन का अंतिम पड़ाव ढूंढ रहे हो। शंकर,हरि और गोलु चाचा एक साथ बैठ बातें करते हुए इंसान के अंतिम पड़ाव का ज्ञान बिखेड़ रहे थे। हम बीच बीच मे अग्नि में सरर डाल आत्मा की शांति ढूंढ रहे थे।
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अग्नि शांति की ओर था। बस राख से धुआं उठता दिख रहा था। सब वापस चलने को हुए। बाउजी बिना कुछ बोले सब समेट चल दिये। पंच लकड़ी विसर्जन के बाद सब वापसी को मुड़े।
मुझे लगा माई मेरे साथ चलने  लगी। शरीर भारी और अंतस्थ  उड़ता सा महसूस होने लगा। घर पहुंचे तो छोटकी ने सबके ऊपर जल छिड़का। अंदर कुछ महिलाएं फिर से रुदन करने लगी।
हम सोच में पड़ गए। जिसे जीते जी समाज सम्मान नही देती उसके लिए मरने के बाद एतना पाखंड क्यों?
बिना कुछ बोले,बिछाए हुए कंबल पे जा बैठे। 
बांकी सब लोग विधि-विधान की चर्चा करने लगे । हम माई के खाली कमरे की तरफ देख के व्यथित होते रहे।
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9 दिनों तक एक सफेद वस्त्र हमको पहनाया गया। रात में छोटकी हमरे बगल में कंबल बिछा सोती थी।
एक दिन छोटकी ने पूछा....भैया कल दो पुलिस वाले भोलन के साथ द्वार पे आए थे। पिताजी गुस्से में दिखे।फिर उ बोले सब निपट जाने दीजिए तब पंचायत में बैठेंगे। कल सरोज की मासी भी हमको बुलावा भेजी थी पर हम माई की मृत्यु की बात कहके टाल दिए। सब मिलके कुछ बड़ा कांड करने वाले है। 
हम बोले छोटकी अब काहे की फिकर। माई रही नहीं।बाउजी हमको देखना नहीं चाहते। बस तुमरी चिंता रहती है।पर सरोज को हम छोड़ नही सकते। जो होगा देखेंगे या गांव छोड़ देंगे। इस सबको निबटा हम सबसे पहले सरोज से उसका राय पूछुंगा। उ हमको धोखा नही देगी। अगर सरोज घर आ जाएगी तो तुमरा मन भी लगा रहेगा वो भोली है और खूब समझदार भी।तुमको बहुत चाहती है। भगवान से मनाओ बात बन जाए वरना तुम इस भाई को भी भूला देना।
छोटकी बस छत को घूरती रही । 
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माई का सारा क्रिया-कर्म सम्पन्न हो गया। हम नहा धो के पैजामा कुर्ता पहिने ही थे कि बाउजी आ धमके। 
बोले....किसकी तैयारी है? घाट पे जाना है का?रासलीला को? टेंशन मत लो कल पंचायत बैठ रहा है।तुमरा पूरा इलाज वंही हो जाएगा सबके सामने। तुमको का लगा मंच पे चढ़ के हीरोगिरी झार दिए त सब सही हो गया। अरे तुमरे चलते जो दंगा-फसाद हुआ उसमें DM साब को कोई कार पे चढ़ते समय पिछवाड़े पे लात मार दिया है। उनका बबासीर फट गया,उ का तुमको माफ कर देंगे। आर्डर दिए हैं सब फसादी को धर के हाजिर करने का और तुम त उसके सरगना निकले। 
तुम जितना रासलीला रचाए हो ना, सबकी गवाही और सफाई कल देना। हम कोई जिम्मा नहीं लेंगे। चले गुंडवन के बेटी से इश्क़ फरमाने। 
उ भोगिन्द्रा हमरे सामने खड़ा भी नही होता है।हमरे बैचमेट था। तीन बार मैट्रिक फैल किया।अनुकंपा से मैट्रिक पास किया। धुरतई करके चार गो टका कमा लिया त इज्जतदार हो गया। 
और जे लड़की को सावित्री समझ रहे हो न उ ओकर तेसर बीबी(बंगालिन) की बेटी है। दू गो को त मार दिया सधा के अब गाड़ी से घूमता है।कौन इज्जत है उसका समाज मे? अरे हम कुछो नही किये लाइफ में तबहियो लोग-समाज, इज्जत देता है कि पढल-लिखल,पीएचडी हैं। चार गो आदमी हमरे ईमानदारी और सामाजिकता का उदाहरण देता है। ऐसे बैठे बिठाए फुटानी नही है हमरा समझे। अपने साथ साथ पूरे खानदान का नाक कटवा दिया तुम। कल के पंचायत में देखना कइसन-कइसन चेहरा है समाज के लोगों का। सबका असलियत समझ मे आएगा तबहिये समझोगे। दुध का दांत झरा नहीं चले गृहस्थी संभालने.......
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दूसरे दिन हमरे द्वार पे पंचायत लगा। सब सरपंच के आगे मुखिया जी बैठे। बाउजी एक किनारे बैठे।भोलन चाचा मुँह में पान भरे एक कोना पकड़ लिए। 20-25 लोग जमीन पे बैठ गए। दू चार गो नारद जैसा दोस्त सब भी आ धमका।
कुछ देर इन्तेजार के बाद सरोज अपने गेंडे जैसे बाप के साथ आती दिखी। उसके साथ 5-7 आदमी और था। सब आके ऐसे विराजमान हुए जैसे उनका राज्याभिषेक होना हो।
कार्यवाही शुरू हुई।
मुखिया जी बोले-दिखुसवा के चलते मेला में उपद्रव हुआ। उ सामाजिक मंच पे क्या अनाप सनाप बोल गया ये जानने की जरूरत है।
सरपंच में से एक बोला-ई भोगिन्दर जी के लड़की से तुमरा क्या वास्ता है?ई भी बताओ।भोगिन्दर जी सामने हैं सब बात स्पष्ट होनी चाहिए।
इतने में भोलन चाचा सफाई दिए-सबसे बड़ी बात ई है कि मंच पर से दिलखुश हमरा और मुखिया जी पे आरोप लगाया कि हम दोनों चंदा का पैसा खाए हैं। सामाजिक काम मे खर्च को ई गलत कैसे बोल गया?
हमने सरोज को भरोसे भरी नजर से देखा। उसकी आंखें सूजी हुई थी। शायद उसे टार्चर किया गया था। चुप चाप सबका मुँह देखते रहे।
बाउजी हाथ जोड़ बोले देखिए मुखिया जी लड़का छोटा है कुछ ऊंच-नीच किया होगा लेकिन इतना भी बुरा नही
भोगिन्दर पिनक के बोला आप का कहना चाह रहे आपका लड़का दुध का धोया है...अरे इसका सब करतूत हमको पता है। ई उ पट्टी के चार गो लड़का को बहला-फुसला के जाने क्या क्या कर रहा था। उ त समय रहते हमको भोलन बता दिया नै त पूरा नाक कटने ही वाला था। हम 10 दिन से इसपे नजर रखे थे। सब राम कहानी मालूम है हमको।
हम भोलन चाचा का मुँह देखने लगे।उ पान को ऐसे चबा रहे थे जैसे देश के अगले राष्ट्रपति वही बनने जा रहे हो।
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बाउजी शांत होक बैठे रहे। मुखिया जी फिर बोले...अरे आपके चुप हो जाने से इसका अपराध कम नही हो जाएगा। अगर पंचायत में कोई फैसला नही होगा त हम सब दिलखुसवा को थाना के सुपुर्द कर देंगे। बहुते कांड है इसका।चुरा के बांस काटना,मिट्टी काटना,उपद्रव के लिए उकसाना और सबसे बड़का केस त लड़की का हरासमेंट का होगा।
बाउजी चुपचाप खड़े हो गए। अपमान और गुस्से से चेहरा लाल पड़ गया। धीरे से बोले आपलोग जो कहें...
भोलन-तपाक से बोला गांव का लड़का है...10-20 सोंटा मारके, 2000 के जुर्माना के साथ माफ कर दिया जाए।
हम मन ही मन सोचने लगे कैसा पापी है ई भोलन....
उधर से मोहर बाबू भी आ गए लगे बांस का हिसाब मुआवजे के साथ गिनाने...
हम बस गूंगे की तरह सब देख-सुन रहे थे।
सरपंच का आवाज गुंजा....का कहते हैं आप। बाउजी कोने में खड़े सोंटे की तरफ बढ़ गए।
तभी बीरबलवा आके खड़ा हो गया। हम और शर्म से गड़ गए।
एक बारगी उ सब बात सुनके बोला, आप लोग कैसा पंचैती कर रहे
 अकेले दिलखुसवा के विपक्ष में बोले जा रहे है। अगर ई गलती किया है त गलती दूसरे पक्ष से भी हुआ होगा।
हमको लगा लपक के बीरबल को छाती से लगा ले और कहें तू ही कुंभ में बिछड़ा हमरा भाई है रे..
बीरबल पढ़ने में तेज,उचितवक्ता और कसरत किये हुए शरीर के साथ नौकरी के प्रयास में लगा था। उसको सब जानते थे कि ई लड़का मुडिया गया त फिर जितना शांत है उससे ज्यादा उग्र हो जाएगा।
पूरा पंचायत एक दूसरे का मुंह देखने लगा।
बीरबल बोला-छोटकी हमको सब बात बताई है कि मेला का चंदा कौन कौन खाया है?पुल बनाने का श्रेय लेके कौन फ़ोटो छपवाया है?
अरे ई अकेले त प्रेम नही न किया है.....सरोज भी साथ दी होगी। नै त पुल बना के ई लंका डाहने त निकला नहीं होगा। इसके काम का चर्चा कोई नही किया जिसके चलते DM साब तक प्रशंसा किये और 1500 का चेक दिए इनाम में...उ चेक का भी त कुछ पता नही चला? 
दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग14 (समापन 1)

#teachersday2020
हमरी प्रेम कहानी भाग 14 (समापन-1)
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बाबूजी आव-देखे न ताव सरपट लात हमरी छाती पे मारे। हम घोलट के दूर जा गिरे। उ लगे चिल्लाने....तुमरा कारण क्या क्या झेले हम सब। माई को खा गया। मंच पे क्या-क्या बोलके मेला का सत्यानाश कर दिया, कल उसका जवाब अलग देना होगा। घर से पैसा ले जाके प्रेमलीला में खर्च कर आया और मेरे माथे 1200 का इलाज का खर्च चढ़ा उसकी कोई चिंता नहीं। कल अगर पंचायत हुआ और एको आदमी हमको गलत-सही बोला त सबसे पहले हम तुमरी जान ही लेंगे
माई बीमार खटिये से लटकल थी और नवाब साब रासलीला का मंचन करने में व्यस्त रहे...
श्राद्ध के बाद अगर तुम इस घर मे नजर आए त काट के इहे आंगन में दफन कर देंगे। अब बैठ के मुँह का देख  रहे हो जाओ हरिया,गोलू,शंकर सब के बुला के लाओ।मोक्ष धाम भी त ले जाना है कंधा देके ।
हम उठके चल दिये। छोटकी गोईठे पे आग सुलगाने लगी। बाबूजी फुफकारते हुए व्यवस्था में लग गए।
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हरि चाचा...हो हरि चाचा....हम किबार का सांकल खटखटावे लगे। दस बार खटखटाए तब जाके हरि चाचा ताड़ी के नींद से जागे। धारी वाला हाफ पैंट पहिने निकले और ऐसे मुँह के तरफ देखे जैसे...वो सपने में रंभा के साथ ता-ता थैया गा रहे हो और हमरे चलते दखल हुआ हो।मुँह बिचका के बोले ...का है? काहे छटपटाए जा रहे हो। हम बोले माई स्वर्ग सिधार गई...बाउजी बुलाए है....अरे..रे बोलके वो संग हो गए। फिर बारी-बारी से गोलू और शंकर चाचा को साथ लिए।
सुबह की लाली घिरने लगी थी। माई को तुलसी के पास चचरी पे लिटा दिया गया था।छोटकी रोते हुए ही सारा व्यवस्था कर रही थी। बाबूजी के गाँजे का जोश ठंढा गया था सो कुर्सी धर बैठ गए थे।
सबके आ जाने पर बिचार-विमर्श शुरू हुआ। कैसे क्या करना है? लकड़ी कहाँ से लिया जाए?घीव का डब्बा कौन लाएगा? आदि-आदि
जैसे जैसे पड़ोसी जगते गए भीड़ बढ़ गया।
एकबारगी नवकी काकी पुकि पार के रोने लगी....अरे छोटकी के माय....अरे एतना का हड़बड़ी था जाने का....कुल अनाथ कर दी....के देखेगा ई दुगो लाल गुलाब के...चार और औरत सुर संगम में भीड़ गई।
तभी कुबड़ी दादी लुढ़कते हुए आगे आई...पछाड़ मारके लोट गई माई पे....आहे....कनिया....आहे के देगा मेरे हुक्का में आग गे... अरे के पूछेगा ई बुढ़िया को चाय गे... ई भगवान बड़ा निर्दयी है...हमका उठा लेते।
भीड़ में साड़ी से मुंह ढके एगो नवविवाहिता बोली....काकी कितनी अच्छी थी....सुहागन मरी....सबका ऐसा नसीब हो...अभियो चेहरे पे हंसी है।
शंकर चाचा आगे बढ़े सबको हटने कह कंधा देने के लिए बांकी सबको बुलाने लगे।
गोलू चाचा बोले...अरे रुको...एतना काहे हड़बड़ाए हो....लंबा प्रोग्राम है।चुनौटी में जेतना खैनी था उ दिलखुसवा के नाटके देखे में रगड़ा गया।डिब्बी भर लेने दो। ई जो लटा रहे इसको दाब के चलते है।
हरिया चाचा जम्हाई में मुँह फ़ाड़के हे राम बोले। बाउजी के तरफ देख के बोले कल शाम में बासी ताड़ी पिला दिया है तब से पेट ममोड रहा। नींदों नहीं आया। मेला से 2 बजे लौटवे किये,जब मार-धार होवे लगा था।
हमरे तरफ देख के बोले...अरे दिलखुसवा उ कौन छोड़ी मंच पे चढ़ गई थी...और का-का बके जा रहे थे अंतिम में तुम? सारा फसाद ओकरे बाद शुरू हुआ था। वैसे ई नाटक यादगार रहेगा सबको। सब मजा हुआ खिलाड़ी सब मंच पे उतरा था। खैर देखो आगे का होगा। लौटते वक्त देखे भोलन के द्वार पे दस लोग जमा होके पता नही क्या माफी,पंचायत का बात कर रहे थे।
हमरे मन मे आया माई से पहिले इसको ही लेटा के मुखाग्नि दे-दें।
ले दे के सब कंधा देने आ गए। अंतिम बार मेरे दिल मे हुक जैसा चुभा।माई विदा हो रही थी और पहली बार बाबूजी फफक-फफक के रोने लगे थे...बस मुँह से निकल रहा था...खूब साथ दी तुम,हमरे जैसा आदमी का...जिनगी भर निकम्मा रहे...एक बार मुँह तक नही खोली...बहुत दुःख दिए अब सुखी रहना....अब कौन हमरा ठाठ का ध्यान रखेगा?
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हम पीछे-पीछे आग लिए चल रहे थे। राम-नाम-सत्य है बोलते सब आगे जा रहे थे। घाट के तरफ बढ़े तो सिहर गए। ई घाट ने हमरा जिनगी,क्या से क्या कर दिया था। 
सब लकड़ी काटे में व्यस्त हो गया।हम बस उ पट्टी को देखते चिंता में डूबे रहे।
चिता सजाया गया। हमको आग देने के लिए आगे बुलाया गया। हमरा हाथ कांपने लगा। जिस माई के गोद मे खेले।छोटकी से झगड़ा कर बचने के लिए जिसके आंचल पीछे छुपे,बाबूजी से जो हमेशा हमको बचाती रही,हमेशा मुँह देख पूछती रहती थी कि तुमको भूख लगा है का? खाते हुए जो दो कौर हमेशा बुला के हमरे मुँह में ठूस देती थी,कभी कभी गर्मी में छत पे बगल में लेट के किस्सा सुनाती थी,आज के बाद उसको फिर कभी नही देख पाएंगे।
फिर से आंखे बरसने लगी।
तभी उ पट्टी सरोज नजर आई। हाथ मे फूल ले पानी मे विसर्जित की और अगरवत्ती जला घाट पे खोंस दी।हम समझ गए उ माई को श्रद्धांजलि दे रही थी।
कलेजा भर आया। आग की लपटें ऊंची उठ गई।चट-चट की आवाज के साथ माई विलीन होने लगी।
बाउजी घुटने पे हाथ रख बस एकटक देखे जा रहे थे।जैसे दो आत्माओं के विखंडन का अंतिम पड़ाव ढूंढ रहे हो। शंकर,हरि और गोलु चाचा एक साथ बैठ बातें करते हुए इंसान के अंतिम पड़ाव का ज्ञान बिखेड़ रहे थे। हम बीच बीच मे अग्नि में सरर डाल आत्मा की शांति ढूंढ रहे थे।
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अग्नि शांति की ओर था। बस राख से धुआं उठता दिख रहा था। सब वापस चलने को हुए। बाउजी बिना कुछ बोले सब समेट चल दिये। पंच लकड़ी विसर्जन के बाद सब वापसी को मुड़े।
मुझे लगा माई मेरे साथ चलने  लगी। शरीर भारी और अंतस्थ  उड़ता सा महसूस होने लगा। घर पहुंचे तो छोटकी ने सबके ऊपर जल छिड़का। अंदर कुछ महिलाएं फिर से रुदन करने लगी।
हम सोच में पड़ गए। जिसे जीते जी समाज सम्मान नही देती उसके लिए मरने के बाद एतना पाखंड क्यों?
बिना कुछ बोले,बिछाए हुए कंबल पे जा बैठे। 
बांकी सब लोग विधि-विधान की चर्चा करने लगे । हम माई के खाली कमरे की तरफ देख के व्यथित होते रहे।
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9 दिनों तक एक सफेद वस्त्र हमको पहनाया गया। रात में छोटकी हमरे बगल में कंबल बिछा सोती थी।
एक दिन छोटकी ने पूछा....भैया कल दो पुलिस वाले भोलन के साथ द्वार पे आए थे। पिताजी गुस्से में दिखे।फिर उ बोले सब निपट जाने दीजिए तब पंचायत में बैठेंगे। कल सरोज की मासी भी हमको बुलावा भेजी थी पर हम माई की मृत्यु की बात कहके टाल दिए। सब मिलके कुछ बड़ा कांड करने वाले है। 
हम बोले छोटकी अब काहे की फिकर। माई रही नहीं।बाउजी हमको देखना नहीं चाहते। बस तुमरी चिंता रहती है।पर सरोज को हम छोड़ नही सकते। जो होगा देखेंगे या गांव छोड़ देंगे। इस सबको निबटा हम सबसे पहले सरोज से उसका राय पूछुंगा। उ हमको धोखा नही देगी। अगर सरोज घर आ जाएगी तो तुमरा मन भी लगा रहेगा वो भोली है और खूब समझदार भी।तुमको बहुत चाहती है। भगवान से मनाओ बात बन जाए वरना तुम इस भाई को भी भूला देना।
छोटकी बस छत को घूरती रही । 
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माई का सारा क्रिया-कर्म सम्पन्न हो गया। हम नहा धो के पैजामा कुर्ता पहिने ही थे कि बाउजी आ धमके। 
बोले....किसकी तैयारी है? घाट पे जाना है का?रासलीला को? टेंशन मत लो कल पंचायत बैठ रहा है।तुमरा पूरा इलाज वंही हो जाएगा सबके सामने। तुमको का लगा मंच पे चढ़ के हीरोगिरी झार दिए त सब सही हो गया। अरे तुमरे चलते जो दंगा-फसाद हुआ उसमें DM साब को कोई कार पे चढ़ते समय पिछवाड़े पे लात मार दिया है। उनका बबासीर फट गया,उ का तुमको माफ कर देंगे। आर्डर दिए हैं सब फसादी को धर के हाजिर करने का और तुम त उसके सरगना निकले। 
तुम जितना रासलीला रचाए हो ना, सबकी गवाही और सफाई कल देना। हम कोई जिम्मा नहीं लेंगे। चले गुंडवन के बेटी से इश्क़ फरमाने। 
उ भोगिन्द्रा हमरे सामने खड़ा भी नही होता है।हमरे बैचमेट था। तीन बार मैट्रिक फैल किया।अनुकंपा से मैट्रिक पास किया। धुरतई करके चार गो टका कमा लिया त इज्जतदार हो गया। 
और जे लड़की को सावित्री समझ रहे हो न उ ओकर तेसर बीबी(बंगालिन) की बेटी है। दू गो को त मार दिया सधा के अब गाड़ी से घूमता है।कौन इज्जत है उसका समाज मे? अरे हम कुछो नही किये लाइफ में तबहियो लोग-समाज, इज्जत देता है कि पढल-लिखल,पीएचडी हैं। चार गो आदमी हमरे ईमानदारी और सामाजिकता का उदाहरण देता है। ऐसे बैठे बिठाए फुटानी नही है हमरा समझे। अपने साथ साथ पूरे खानदान का नाक कटवा दिया तुम। कल के पंचायत में देखना कइसन-कइसन चेहरा है समाज के लोगों का। सबका असलियत समझ मे आएगा तबहिये समझोगे। दुध का दांत झरा नहीं चले गृहस्थी संभालने.......
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दूसरे दिन हमरे द्वार पे पंचायत लगा। सब सरपंच के आगे मुखिया जी बैठे। बाउजी एक किनारे बैठे।भोलन चाचा मुँह में पान भरे एक कोना पकड़ लिए। 20-25 लोग जमीन पे बैठ गए। दू चार गो नारद जैसा दोस्त सब भी आ धमका।
कुछ देर इन्तेजार के बाद सरोज अपने गेंडे जैसे बाप के साथ आती दिखी। उसके साथ 5-7 आदमी और था। सब आके ऐसे विराजमान हुए जैसे उनका राज्याभिषेक होना हो।
कार्यवाही शुरू हुई।
मुखिया जी बोले-दिखुसवा के चलते मेला में उपद्रव हुआ। उ सामाजिक मंच पे क्या अनाप सनाप बोल गया ये जानने की जरूरत है।
सरपंच में से एक बोला-ई भोगिन्दर जी के लड़की से तुमरा क्या वास्ता है?ई भी बताओ।भोगिन्दर जी सामने हैं सब बात स्पष्ट होनी चाहिए।
इतने में भोलन चाचा सफाई दिए-सबसे बड़ी बात ई है कि मंच पर से दिलखुश हमरा और मुखिया जी पे आरोप लगाया कि हम दोनों चंदा का पैसा खाए हैं। सामाजिक काम मे खर्च को ई गलत कैसे बोल गया?
हमने सरोज को भरोसे भरी नजर से देखा। उसकी आंखें सूजी हुई थी। शायद उसे टार्चर किया गया था। चुप चाप सबका मुँह देखते रहे।
बाउजी हाथ जोड़ बोले देखिए मुखिया जी लड़का छोटा है कुछ ऊंच-नीच किया होगा लेकिन इतना भी बुरा नही
भोगिन्दर पिनक के बोला आप का कहना चाह रहे आपका लड़का दुध का धोया है...अरे इसका सब करतूत हमको पता है। ई उ पट्टी के चार गो लड़का को बहला-फुसला के जाने क्या क्या कर रहा था। उ त समय रहते हमको भोलन बता दिया नै त पूरा नाक कटने ही वाला था। हम 10 दिन से इसपे नजर रखे थे। सब राम कहानी मालूम है हमको।
हम भोलन चाचा का मुँह देखने लगे।उ पान को ऐसे चबा रहे थे जैसे देश के अगले राष्ट्रपति वही बनने जा रहे हो।
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बाउजी शांत होक बैठे रहे। मुखिया जी फिर बोले...अरे आपके चुप हो जाने से इसका अपराध कम नही हो जाएगा। अगर पंचायत में कोई फैसला नही होगा त हम सब दिलखुसवा को थाना के सुपुर्द कर देंगे। बहुते कांड है इसका।चुरा के बांस काटना,मिट्टी काटना,उपद्रव के लिए उकसाना और सबसे बड़का केस त लड़की का हरासमेंट का होगा।
बाउजी चुपचाप खड़े हो गए। अपमान और गुस्से से चेहरा लाल पड़ गया। धीरे से बोले आपलोग जो कहें...
भोलन-तपाक से बोला गांव का लड़का है...10-20 सोंटा मारके, 2000 के जुर्माना के साथ माफ कर दिया जाए।
हम मन ही मन सोचने लगे कैसा पापी है ई भोलन....
उधर से मोहर बाबू भी आ गए लगे बांस का हिसाब मुआवजे के साथ गिनाने...
हम बस गूंगे की तरह सब देख-सुन रहे थे।
सरपंच का आवाज गुंजा....का कहते हैं आप। बाउजी कोने में खड़े सोंटे की तरफ बढ़ गए।
तभी बीरबलवा आके खड़ा हो गया। हम और शर्म से गड़ गए।
एक बारगी उ सब बात सुनके बोला, आप लोग कैसा पंचैती कर रहे
 अकेले दिलखुसवा के विपक्ष में बोले जा रहे है। अगर ई गलती किया है त गलती दूसरे पक्ष से भी हुआ होगा।
हमको लगा लपक के बीरबल को छाती से लगा ले और कहें तू ही कुंभ में बिछड़ा हमरा भाई है रे..
बीरबल पढ़ने में तेज,उचितवक्ता और कसरत किये हुए शरीर के साथ नौकरी के प्रयास में लगा था। उसको सब जानते थे कि ई लड़का मुडिया गया त फिर जितना शांत है उससे ज्यादा उग्र हो जाएगा।
पूरा पंचायत एक दूसरे का मुंह देखने लगा।
बीरबल बोला-छोटकी हमको सब बात बताई है कि मेला का चंदा कौन कौन खाया है?पुल बनाने का श्रेय लेके कौन फ़ोटो छपवाया है?
अरे ई अकेले त प्रेम नही न किया है.....सरोज भी साथ दी होगी। नै त पुल बना के ई लंका डाहने त निकला नहीं होगा। इसके काम का चर्चा कोई नही किया जिसके चलते DM साब तक प्रशंसा किये और 1500 का चेक दिए इनाम में...उ चेक का भी त कुछ पता नही चला? 
दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग14 (समापन 1)

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