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पाताल की गहराइयाँ भी नापी हैँ मैंने और आकश की ऊं

पाताल की गहराइयाँ  भी नापी हैँ मैंने  और आकश की ऊंचाईया भी देखली
पर ज़ो कुछ मैं पाना चाहता हूँ  वोकहीं भी उपलब्ध नही था

अवसाद के इन तमाम  गीतो मे
एक स्वर ऐसा भी  ज़ो पराजित होने को तैयार  नही था

ये भिखारी  चोर आत्तताई और आतंकवादी
ये  सब  हमारा ही  तों  निर्माण था

घात प्रतिघात और सुख दुख के संवेदनो से ही जीवन का हहास  हुआ हैँ
इसीलिए चेतना का क्षितिज भी आज  धूमिल हुआ था

©Parasram Arora निर्माण..
पाताल की गहराइयाँ  भी नापी हैँ मैंने  और आकश की ऊंचाईया भी देखली
पर ज़ो कुछ मैं पाना चाहता हूँ  वोकहीं भी उपलब्ध नही था

अवसाद के इन तमाम  गीतो मे
एक स्वर ऐसा भी  ज़ो पराजित होने को तैयार  नही था

ये भिखारी  चोर आत्तताई और आतंकवादी
ये  सब  हमारा ही  तों  निर्माण था

घात प्रतिघात और सुख दुख के संवेदनो से ही जीवन का हहास  हुआ हैँ
इसीलिए चेतना का क्षितिज भी आज  धूमिल हुआ था

©Parasram Arora निर्माण..