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तन्हा रहकर अब जिया नहीं जाता, घूंट सब्र का पिया नह

तन्हा रहकर अब जिया नहीं जाता,
घूंट सब्र का पिया नहीं जाता है।

एकांत में रातें बड़ा सताती है,
अंगड़ाई लेते हुए रात गुजर जाती है।

जब जब याद किसी की आती है,
जान दिल से निकल जाती है।

जब जब उजाले की ओर देखती हूं,
अपनी परछाई से भी डर जाती हूं।

दीदार उनका पाना चाहती हूं,
तड़फती हुई आंखों से अश्रु बहा देती हूं ।

आंखों की रौनक
और 
चेहरे की चमक 
गायब होती जा रही है,
ये कमसिन जवानी
और 
गालों की लाली
तुम्हारे बिन फीकी नजर आ रही है।

©Shishpal Chauhan
  #अकेलापन_और_तन्हाई