भारत की फिज़ाओं में सदा याद रहूंगा, आज़ाद था, आज़ाद हूं, आज़ाद रहूंगा। अमर क्रांतिकारी शहीद चंद्रशेखर आज़ाद ने यह अमर स्वर उन्होंने सिर्फ कहे ही नहीं थे बल्कि अपनी देह को उन फिरंगीयों के ज़िंदा हाथ न लगने देने की प्रतिज्ञा का मान रखते हुए अपने बंदूक की बची हुई अंतिम गोली से प्रयागराज की पावन मिट्टी में आज 27 फरवरी के दिन स्वयं ही अपने प्राण को भारत मां के चरणों में न्योछावर कर चरितार्थ भी किया था। ऐसे भारत मां के इस सच्चे सपूत को उनके शहीदी दिवस पर आकाश भर सादर नमन। यह उन क्रांतिकारियों में से थे जो एक हाथ में गीता और दूसरे हाथ में बंदूक रखते थे। "जब आजाद ने अपनी अमर पंक्ति कह ही दी है राही, तो तुम क्यों उनसे बेहतर कहने की कोशिश कर रहे हो?" जय हिन्द, जय भारत #chandrashekharaazad