कैसे - कैसे मन्जर सामने आने लगे हैं , मानवता के पद - चिन्ह डगमगाने लगे हैं , नहीं रही सुरक्षित बहु - बेटियां अपने ही घर में , हवसी दरिंदें गिद्ध से मंडराने लगे हैं , जाती थी कभी नन्ही जान अपने स्कूल खुशी खुशी , अब तो ओ भी डरे सहमे जाने लगे हैं , कहते थे समाज के रच्छक जिनको , ओ भी भच्छक बन कर पैसे खाने लगे हैं , था भरोसा देश के कोर्ट पर पीड़ितों का , पर ओ भी हैसियत देख फैसले सुनाने लगे हैं , हवा में बिखरी थी मानवता की खुश्बू कभी , अब तो हवसी पापियों के गन्ध आने लगे।।PKM.. कैसे-कैसे मंजर सामने आने लगें हैं...