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क्यूँ प्रभा है रूठी प्रथा से,जो अरुणिमा ये न लाती,

क्यूँ प्रभा है रूठी प्रथा से,जो अरुणिमा ये न लाती,
गिरि श्रेणियों में भी देखो एक रश्मि न दृश्य होती।
इन गिरिवरों की राह में पर्वतों की ढाल में 
किंकिणों के मार्ग में,हर घङी अविराम में।
मैं अकेली चल रही हूँ ,हर जगह सुंसान में । 
हर गुफा ,हर कंदरा,
हर कोण इस भूमि का,
जिसमें कि द्युति रश्मि कैद हों!
ढूँढ लाऊँगी उन्हें मैं ,
पाताल हो या स्वर्ग हो। भीङ में हूँ मैं अकेली,
अमावस सी रात है।
काल जैसी इस पवन में, 
ही भयानक राज़ है।
काली निशा का तिमिर व्यूह ,
क्यूँ न होता उज्ज्वल कभी
क्यों मयंक है हार जाता इस भीष्ण अंधकार से
क्यूँ प्रभा है रूठी प्रथा से जो अरुणिमा ये न लाती
क्यूँ प्रभा है रूठी प्रथा से,जो अरुणिमा ये न लाती,
गिरि श्रेणियों में भी देखो एक रश्मि न दृश्य होती।
इन गिरिवरों की राह में पर्वतों की ढाल में 
किंकिणों के मार्ग में,हर घङी अविराम में।
मैं अकेली चल रही हूँ ,हर जगह सुंसान में । 
हर गुफा ,हर कंदरा,
हर कोण इस भूमि का,
जिसमें कि द्युति रश्मि कैद हों!
ढूँढ लाऊँगी उन्हें मैं ,
पाताल हो या स्वर्ग हो। भीङ में हूँ मैं अकेली,
अमावस सी रात है।
काल जैसी इस पवन में, 
ही भयानक राज़ है।
काली निशा का तिमिर व्यूह ,
क्यूँ न होता उज्ज्वल कभी
क्यों मयंक है हार जाता इस भीष्ण अंधकार से
क्यूँ प्रभा है रूठी प्रथा से जो अरुणिमा ये न लाती