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सीने को चिरती हुई यह ठंड भूख की अग्नी में सुलगता

 सीने को चिरती हुई यह ठंड 
भूख की अग्नी में सुलगता हुआ पेट 
कानो से गुजरती हार्न की धव्नी 
पर फिर भी आगे बढने की चाह वो रखती है 
उसे कोई तो बताअो ख्वाब गरीबों के लिए नही होती 
उफ्फ वह नादान चिङीयाँ अक्सर मंहगे ख्वाब देखती है॥ 

गुब्बारो को देख,फिर रूक जाती है अपने अरमानो को समेट मेलो में नाच दिखाती है
 सीने को चिरती हुई यह ठंड 
भूख की अग्नी में सुलगता हुआ पेट 
कानो से गुजरती हार्न की धव्नी 
पर फिर भी आगे बढने की चाह वो रखती है 
उसे कोई तो बताअो ख्वाब गरीबों के लिए नही होती 
उफ्फ वह नादान चिङीयाँ अक्सर मंहगे ख्वाब देखती है॥ 

गुब्बारो को देख,फिर रूक जाती है अपने अरमानो को समेट मेलो में नाच दिखाती है