चौकडिया छन्द जीती बाजी कौ मैं हारा , बनता कौन सहारा । जिनको दया धर्म सिखलाया , करता वही किनारा ।। अपनी असफलताओं को मैं , फिर से आज विचारा । आशा मन की दूर हटाकर , किस्मत को ललकारा ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौकडिया छन्द जीती बाजी कौ मैं हारा , बनता कौन सहारा । जिनको दया धर्म सिखलाया , करता वही किनारा ।। अपनी असफलताओं को मैं , फिर से आज विचारा । आशा मन की दूर हटाकर , किस्मत को ललकारा ।। महेन्द्र सिंह प्रखर