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ग़ज़ल जो तुझ पर है कर्ज तो वो कर्ज अदा कर, जो तेरा

ग़ज़ल
जो तुझ पर है कर्ज तो वो कर्ज अदा कर,
जो तेरा है फ़र्ज़ फकत वो फ़र्ज़ अदा कर।

तेरी कातिल अदाओं से जो हुआ में घायल, 
अब मरीज़-ए-दिल को दवा-ए-मर्ज अदा कर।

वो मर्ज कुछ और नहीं तुझसे हुआ इश्क़ ही है,
इस शब-ए-हिज्र में कुछ हर्जाना-ए-हर्ज अदा कर।

शायद मेरे तर्ज़-ए-मोहब्बत से रूठ गई हो तू,
गर नापसंद है तो खुदी का यह तर्ज़ अदा कर।

मै मुत्मइन था की यह मुकम्मल इश्क़ ही होगा,
अब खुदा से खैरियत-ए-'राही' की अर्ज़ अदा कर। #खैरियत
#मरीज़_ए_दिल #दवा_ए_मर्ज #शब_ए_हिज्र  #हर्जाना_ए_हर्ज  = नुकसान की भरपाई  #तर्ज़_ए_मोहब्बत #मुत्मइन
ग़ज़ल
जो तुझ पर है कर्ज तो वो कर्ज अदा कर,
जो तेरा है फ़र्ज़ फकत वो फ़र्ज़ अदा कर।

तेरी कातिल अदाओं से जो हुआ में घायल, 
अब मरीज़-ए-दिल को दवा-ए-मर्ज अदा कर।

वो मर्ज कुछ और नहीं तुझसे हुआ इश्क़ ही है,
इस शब-ए-हिज्र में कुछ हर्जाना-ए-हर्ज अदा कर।

शायद मेरे तर्ज़-ए-मोहब्बत से रूठ गई हो तू,
गर नापसंद है तो खुदी का यह तर्ज़ अदा कर।

मै मुत्मइन था की यह मुकम्मल इश्क़ ही होगा,
अब खुदा से खैरियत-ए-'राही' की अर्ज़ अदा कर। #खैरियत
#मरीज़_ए_दिल #दवा_ए_मर्ज #शब_ए_हिज्र  #हर्जाना_ए_हर्ज  = नुकसान की भरपाई  #तर्ज़_ए_मोहब्बत #मुत्मइन