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ये शहर तेरे किनारे पर बैठें, बाहों में शामे गुजारी

ये शहर तेरे किनारे पर बैठें,
बाहों में शामे गुजारी न होती,
हम जो तुमसे मोहब्बत न करते,
ये आंखों में लाली न होती,

अपने फूलों को उजाडे है तब ही,
उनके घर खुशनुमा हुये है,
गुल ये देख कर हस रहे है,
मैरे पैरो में छाले हुए है,

कर्ज देकर हसाये हुए है,
सुध लेकर रूलाये हुए है,
मस्तियो का किनारा था कुछ ही कदम पर
कश्तियों से उतारे गए है,

जिनको अपना समझा था अपने
वो भी बैगेरत पराये हुए है,
रहनुमा तुम हो रोशनी के,
हम अंधेरों के पाले हुए है,

हम जो देकर निवाले गए है,
उनके चौखट से उछाले गए है,
जो घर मैंने बना कर दिया था,
हम उस घर से निकाले गए है,

आंखे राह तक रही है हमेशा,
दूर हमसे उजाले गए हैं
रहनुमा तुम हो रोशनी के,
हम अंधेरों के पाले हुए है,

अपने फूलों को उजाडे है तब ही,
उनके घर खुशनुमा हुये है,
गुल ये देख कर हस रहे है,
मैरे पैरो में छाले हुए है,
प्रवीण मेरे पैरों के छाले हुए है,,,,,,,,,,,

#प्रवीण
ये शहर तेरे किनारे पर बैठें,
बाहों में शामे गुजारी न होती,
हम जो तुमसे मोहब्बत न करते,
ये आंखों में लाली न होती,

अपने फूलों को उजाडे है तब ही,
उनके घर खुशनुमा हुये है,
गुल ये देख कर हस रहे है,
मैरे पैरो में छाले हुए है,

कर्ज देकर हसाये हुए है,
सुध लेकर रूलाये हुए है,
मस्तियो का किनारा था कुछ ही कदम पर
कश्तियों से उतारे गए है,

जिनको अपना समझा था अपने
वो भी बैगेरत पराये हुए है,
रहनुमा तुम हो रोशनी के,
हम अंधेरों के पाले हुए है,

हम जो देकर निवाले गए है,
उनके चौखट से उछाले गए है,
जो घर मैंने बना कर दिया था,
हम उस घर से निकाले गए है,

आंखे राह तक रही है हमेशा,
दूर हमसे उजाले गए हैं
रहनुमा तुम हो रोशनी के,
हम अंधेरों के पाले हुए है,

अपने फूलों को उजाडे है तब ही,
उनके घर खुशनुमा हुये है,
गुल ये देख कर हस रहे है,
मैरे पैरो में छाले हुए है,
प्रवीण मेरे पैरों के छाले हुए है,,,,,,,,,,,

#प्रवीण