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दिल से दिल्लगी बहुत हो गयी , कागज-कलम अब लेने


दिल से दिल्लगी बहुत हो गयी ,
    कागज-कलम अब लेने दे ।
जज्बातो को में दिल पर लूंगा नही ,
    कलम कागज पर चल जाने दे  ।।
नही लूंगा ऊँची उड़ान,
    पैर जमी पर टिके ही रहने दे ।
आदत नही पद-शोहरत की ,
    आहिस्ता-आहिस्ता ही मुझे बढ़ने दे ।।
शरा-शरियत की बात नही ,
    दिल-ए-मोहब्बत की बात करने दे ।
गेरो से भी अलामत हो गयी ,
    कुछ अपने दिल की भी लिखने दे ।।
मै तो इंसानी ही बन्दा हूं ,
   तख्त-ए-ताज को दूर रहने दे ।
गर-फर्ज पड़े मोहब्बत की ,
      तो फिर ये जंग मुझे लड़ने दे ।।
मोहब्बत हे दिल में मुझे अब भी तेरी,
       सरे आम बया मुझे करने दे ।
नही चाहत गर तुमको मेरी भी ,
     तो मोहब्बत की बाते "इब्ने-मीर" में मुझे लिखने दे ।।

    
    शरा-शरियत =कानून कायदा
    अलामत=पहचान

©Ashok Jorasia
  #शायरी_गजल