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कहीं दूर क्षितिज पर जब दिन ढलने लगता है तो सा

कहीं दूर क्षितिज पर जब  दिन ढलने लगता है

 तो

 सांझ रूपी  दुल्हन भी
 छुपके छुपके, 
शांति और खामोशी के साथ
अंधकार रूपी बिस्तर में 
सहजता ,चंचलता
ओर बड़ी ही नजाकत और आदर्श स्वरूप में
रात्रि की आगोश में चली जाती है
,, 

जब प्रकृति भी अपनी मर्यादा, स्वरूप को 
अपनाए हुए है और उसी के अनुरूप रहती है

तो 

खुद को सर्वोपरि बताने वाली 
मनुष्य जात 
क्यों अपनी सभ्यता ,संस्कृति , रीती रिवाज, मर्यादा,
संस्कारों को भूलकर 
गंदगी और कीचड़ के दलदल में धसने को 
अपना विकास समझने की भूल कर रही है,,,,...

©Rakesh frnds4ever
  #मर्यादा 
कहीं दूर क्षितिज पर जब  दिन ढलने लगता है

 तो

 #सांझ रूपी  #दुल्हन  भी
 छुपके छुपके, 
शांति और खामोशी के साथ

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