कर्णधार साहब:-समझ में भी नहीं आएगा अब तुम सबको,कर्णधार साहब:- जिस जमीन पर तुम सब मोहल्ले वालों की नजर थी,आज से वो जमीन मेरे हवाले आ गई है| क्रोध से:-अगर कोई भी मोहल्ले का शख्स उस जमीन पर गंदी नजर डालेगा तो उसे कर्णधार बक्से गा नहीं.चारों शख्स:-अरे!कौन नजर ही डाल रहा है उस पर कौन सी मेरे बाप की जजात है जो उस पर हम सब नजर डाले के लिए आतुर है चारों शख्स:-मरे रोये वो जिसकी जमीन थी हम सब क्यों?उस पर नजर डालेंगे अपनी हजामत बनवाने के लिए. इतना कहकर वो सब अपने-अपने घर की ओर रवाना हो गए,मन में सोचते हुए कि अब रामाधार,भानु प्रताप और विश्वेश्वर का क्या होगा?,कर्णधार साहब तो अब ऐसा बदल गए जैसे रुपया पाते ही गवाह बदल जाता है,कर्णधार साहब के व्यक्तित्व में बहुत बदलाव आ गया इन तीनों के प्रति| अब तक जितना इनके हीत के बारे में सोचते थे,अब उसका तिहावा हिस्सा भी नहीं सोचते कर्णधार साहब|"वही वाली हाल हो गई अपना काम बनता भाड़ में गई जनता" कर्णधार साहब के इन तीनों बेटों की इज्जत इस कोठी में रहने वाले नौकर से भी बत्तर हो गई| स्वप्न में भी रामाधार,भानु प्रताप,विश्वेश्वर सोच नहीं सकते थे, कि मेरे इज्जत की धज्जियां इस प्रकार उड़ेंगी.दिन भर कोल्हू के बैल की तरह काम करवाता और खाने-पीने के नाम पर, अंगूठा दिखाकर खिल्ली उड़ाता| बेचारे काम तो दिन भर खूब करते, #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-