कई बार मरते मरते बच गया हूँ और कई बार मरते मरते थक भी गया हूँ कई बार तो मै उस बेजान टापू की तरह हो जाता हूँ जिसे सबने छोड़ दिया है अक्सर कोशिश रहती है मेरी क़ि अपने जख्मों पर परतें चढ़ा कर रखूं ताक़ि कोई उन्हें देख न सके.. और मै उनकी सजावटी सहानुभूति पाने से बच भी जाऊं ©Parasram Arora सहानुभूति......