युग बीत गए जीव थक गए, पर अब भी, भरमाए भाग रहे है, उस कल्पतरु के पीछे जो निकला था सागर मंथन से... कुछ क्षण रूको नेत्र मूंद कर वह भीतर ही है, तुम्हारे पास... हाँ, तुम्हारा मन..!!! अविनाशी कल्पतरु ही है । मन ही हार और जीत का कारण है, और मन ही मुक्ति और बंधन का कारण भी है, मन ही कल्पतरु है जो सारी ईच्छाएँ पूर्ण कर सकता है, अतः मन के स्वमि बनो, दास नही । #yqdidi #मन #कल्पतरु #आध्यत्मिक #spirituality #hindiquotes #विष्णुप्रिया