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ग़ज़ल-२५४ (१२२२-१२२२-१२२) ------------------- सिया

ग़ज़ल-२५४ (१२२२-१२२२-१२२)
-------------------
सियासत में बड़ा कोई नहीं है
हैं पौने सब, सवा कोई नहीं है //१

ये गुटखा हर जगह जो थूकते हैं 
इन्हें क्यों टोकता कोई नहीं है //२

भुला देंगे भला जो भी किया, पर
बुराई भूलता कोई नहीं है //३

मियाँ परहेज़ में ही है गुज़ारा
करोना की दवा कोई नहीं है //४

बहुत देखें हैं पंडित और फ़ाज़िल
ख़ुदा से आशना कोई नहीं है //५

उठा जो 'राज़' सो के ज़िंदगी से
तो देखा दूसरा कोई नहीं है //६

#राज़_नवादवी© #peace
ग़ज़ल-२५४ (१२२२-१२२२-१२२)
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सियासत में बड़ा कोई नहीं है
हैं पौने सब, सवा कोई नहीं है //१

ये गुटखा हर जगह जो थूकते हैं 
इन्हें क्यों टोकता कोई नहीं है //२

भुला देंगे भला जो भी किया, पर
बुराई भूलता कोई नहीं है //३

मियाँ परहेज़ में ही है गुज़ारा
करोना की दवा कोई नहीं है //४

बहुत देखें हैं पंडित और फ़ाज़िल
ख़ुदा से आशना कोई नहीं है //५

उठा जो 'राज़' सो के ज़िंदगी से
तो देखा दूसरा कोई नहीं है //६

#राज़_नवादवी© #peace
raznawadwi7818

Raz Nawadwi

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