ग़ज़ल :- माँग तेरी मैं सज़ाना चाहता हूँ हाँ तुझे अपना बनाना चाहता हूँ राह उल्फ़त की बनाना चाहता हूँ प्यार हर दिल में बसाना चाहता हूँ आप बिन तो इस जहाँ में कुछ नही है बात मिलकर ये बताना चाहता हूँ दो कदम जो साथ मेरे तुम चलो तो इक़ नई दुनिया दिखाना चाहता हूँ रोते-रोते रात सारी कट गई यह भोर तक तुमको हँसाना चाहता हूँ ख़्वाब में आकर करोगे तुम परेशां नींद पलको से हटाना चाहता हूँ बिन तुम्हारे जो गुजारी है यहाँ पर उसकी हर कीमत चुकाना चाहता हूँ भूलकर बातें पुरानी आज तुमको मैं गले अपने लगाना चाहता हूँ फिर न तोड़े कोई ये बंधन वफ़ा का इस तरह रिश्ते निभाना चाहता हूँ । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- माँग तेरी मैं सज़ाना चाहता हूँ हाँ तुझे अपना बनाना चाहता हूँ राह उल्फ़त की बनाना चाहता हूँ प्यार हर दिल में बसाना चाहता हूँ आप बिन तो इस जहाँ में कुछ नही है बात मिलकर ये बताना चाहता हूँ दो कदम जो साथ मेरे तुम चलो तो