की कितनी जल्दी रात ढले और सूरज दरवाजे पर दस्तक दे और हम इन तीनों को लेकर कचेहरी पहुंचे,ताकि उन्हें अपना उल्लू सीधा करने में समय ना लगे, कब रात गुजरी कब सूरज दरवाजे पर दस्तक दे गया और कब इन तीनों को संघ लेकर कर्णधार साहब कचहरी पहुंच गए कुछ पता ही ना चला| अब से कुछ ही घंटों बाद कर्णधार साहब का उल्लू सीधा होने में कोई कसर न छूटेगी. भाग(4) वैसे तो उस बस्ती में फकीर नाम मात्र से भी कम बचे थे,और जो उस मोहल्ले में बचे हुए थे उन्हें फकीरों की श्रेणी में रखा नहीं जा सकता.आप यूं कह लीजिए कि वो भी अमीर है परंतु कर्णधार से कम,एक से बढ़कर एक बनी कोठी उस नगर की सुंदरता में वृद्धि कर रही हैं,"परंतु एक बात तो है अमीरों के पास सब कुछ होता है"पर उनके पास दिल बडे नहीं होते".चाहे निम्न कोटि का अमीर हो या उच्च कोटि का| कर्णधार साहब गला फाड़कर:- बीच मोहल्ले में जाकर है कोई कर्णधार के सामने खड़ा होने वाला,उत्साहित होकर:-बोलो बोलो.दो चार शख्स मोहल्ले के आपस में:-अरे!भाइयों इसे क्या हो गया?जो इतना गला फाड़ रहा है मूर्खों की तरह,अरे!कुछ नहीं,पा गया होगा हीरे की मुदरी. बात पकड़ते हुए:-सही कहे तुम सब हीरे की मुदरी ही मेरे हाथों लग गई है,सब आपस में आश्चर्यचकित होकर कह क्या रहा है?ये कुछ समझ नहीं आता. #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी के आगे का अंश:-