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Nisha Dhiman
*स्त्रियाँ*, कुछ भी बर्बाद नही होने देतीं। वो सहेजती हैं।संभालती हैं।ढंकती हैं।बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक। कभी तुरपाई कर के। कभी टाँका लगा के। कभी धूप दिखा के।कभी हवा झला के। कभी छाँटकर। कभी बीनकर। कभी तोड़कर। कभी जोड़कर देखा होगा ना? अपने ही घर में उन्हें खाली डब्बे जोड़ते हुए। बची थैलियाँ मोड़ते हुए। बची रोटी शाम को खाते हुए। दोपहर की थोड़ी सी सब्जी में तड़का लगाते हुए। दीवारों की सीलन तस्वीरों से छुपाते हुए। बचे हुए खाने से अपनी थाली सजाते हुए। फ़टे हुए कपड़े हों। टूटा हुआ बटन हो। पुराना अचार हो। सीलन लगे बिस्किट, चाहे पापड़ हों। डिब्बे मे पुरानी दाल हो। गला हुआ फल हो। मुरझाई हुई सब्जी हो। या फिर तकलीफ़ देता " रिश्ता " वो सहेजती हैं।संभालती हैं। ढंकती हैं।बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक.. इसलिए , आप अहमियत रखिये! वो जिस दिन मुँह मोड़ेंगी तुम ढूंढ नहीं पाओगे...। *स्त्रियाँ*, कुछ भी बर्बाद नही होने देतीं। वो सहेजती हैं।संभालती हैं।ढंकती हैं।बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक। कभी तुरपाई कर के। कभी ट
*स्त्रियाँ*, कुछ भी बर्बाद नही होने देतीं। वो सहेजती हैं।संभालती हैं।ढंकती हैं।बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक। कभी तुरपाई कर के। कभी ट
read moreDarshan Blon
बनाया था ऐ खुदा तूने घर एक प्यारा सा, बनाये थे सिद्दत से अपने हाथों से तूने बसने के लिए उसमे इंसान, बांटकर, काटकर, छाँटकर हमने उजाड़ दिया तेरा वो आशियाँ, लड़कर, झगड़कर, तोड़ मड़ोड़कर बिध्वंश कर दिया तेरा ये जहाँ, प्यार-मुहब्बत से सींचे हुए तेरे ज़मीन पर "नफरत के ऊँचे दीवार" खड़ी करदी है हम इंसानोने, तेरा प्रतीक माने जाने बच्चों तक को नहीं बक्शा है हम नापाक इंसानोने, गोली बारूदों के निर्मम प्रहारोंसे छलनी कर दिया है इंसानियत का छाती, हे बौद्ध,अल्लाह,ईसा व नानक; देखो यहाँ:कहीं गुम है शान्ति, इंसान इंसान को मारने पे उतारू, चारों और बस दंगे हाहाकार, बैठा है तू क्यों मूक-दर्शक बने आखिर क्यों तू यूँ बेबश-लाचार? हो रहे कत्ल सरेआम तेरे नाम पर क्यों है बैठा फिरभी चुपचाप ऐ मेरे खुदा ये सब जानकार? कुछ बोल तो सही,कुछ कर तो सही, अपने खोखले शक्तियों पर ना गुमान कर, भुला देंगे तेरे चाहनेवाले तुझे; यूँ खुदा होने पर ना तू अभिमान कर अपने खुदा होने का ना तू अभिमान कर!! बनाया था ऐ खुदा तूने घर एक प्यारा सा, बनाये थे सिद्दत से अपने हाथों से तूने बसने के लिए उसमे इंसान, बांटकर, काटकर, छाँटकर हमने उजाड़ दिया
बनाया था ऐ खुदा तूने घर एक प्यारा सा, बनाये थे सिद्दत से अपने हाथों से तूने बसने के लिए उसमे इंसान, बांटकर, काटकर, छाँटकर हमने उजाड़ दिया #yqbaba #yqdidi #PrayforSyria #whereisgod #haiwaaniyat #sharamsaarinsaaniyat #danawinsaan #silentprayers
read moreमुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
✍️*स्त्रियाँ*, ✍️ कुछ भी बर्बाद नहीं होने देतीं। वो सहेजती हैं।,सँभालती हैं। ढँकती हैं। बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक। कभी तुरपाई कर के। कभी टाँका लगा के। कभी धूप दिखा के। कभी हवा झला के। कभी छाँटकर। कभी बीनकर। कभी तोड़कर। कभी जोड़कर। देखा होगा ना👱♀ ? अपने ही घर में उन्हें खाली डब्बे जोड़ते हुए। बची थैलियाँ मोड़ते हुए। बची रोटी शाम को खाते हुए। दोपहर की थोड़ी सी सब्जी में तड़का लगाते हुए। दीवारों की सीलन तस्वीरों से छुपाते हुए। बचे हुए खाने से अपनी थाली सजाते हुए। फ़टे हुए कपड़े हों ,टूटा हुआ बटन हो। पुराना अचार हो,सीलन लगे बिस्किट, चाहे पापड़ हों,डिब्बे में पुरानी दाल हो। गला हुआ फल हो ,मुरझाई हुई सब्जी हो। या फिर😧 तकलीफ़ देता " रिश्ता " वो सहेजती हैं ,सँभालती हैं,ढँकती हैं। बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक... इसलिए , आप अहमियत रखिये👱♀ वो जिस दिन मुँह मोड़ेंगीं तुम ढूँढ़ नहीं पाओगे...। 🙏 *मकान" को "घर" बनाने वाली रिक्तता उनसे पूछो, जिस घर में नारी नहीं , वो घर नहीं, मकान कहे जाते हैं*🙏 Dedicated to all mothers, sisters n all the respected ladies ... ©Ankur Mishra ✍️*स्त्रियाँ*, ✍️ कुछ भी बर्बाद नहीं होने देतीं। वो सहेजती हैं।,सँभालती हैं। ढँकती हैं। बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक। कभी तुरपाई कर के
✍️*स्त्रियाँ*, ✍️ कुछ भी बर्बाद नहीं होने देतीं। वो सहेजती हैं।,सँभालती हैं। ढँकती हैं। बाँधती हैं। उम्मीद के आख़िरी छोर तक। कभी तुरपाई कर के #Poetry #womanempower
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