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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल  मौत थीं सामने  ज़िन्दगी चुप रही  दर्द के दौर मैं  हर खुशी चुप रही   जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को  बंद आँखें  वही मुखबिरी चुप रही  #शायरी

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White ग़ज़ल 
मौत थीं सामने  ज़िन्दगी चुप रही 
दर्द के दौर मैं  हर खुशी चुप रही 

 जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को 
बंद आँखें  वही मुखबिरी चुप रही 

दीन ईमान वो बेच खाते  रहे 
जिनके आगे मेरी बोलती चुप रही 

बोलियां जो बहुत बोलते थे यहाँ
उन पे कोयल की जादूगरी चुप रही

वो जो मरकर जियें या वो जीकर मरें
देखकर यह बुरी त्रासदी चुप रही ।।

बाढ़ में ढ़ह गये गाँव घर और पुल ।
और टेबल पे फ़ाइल पड़ी चुप रही ।।

देखकर ख़ार को हम भी खामोश थे ।
जो मिली थी प्रखर वो खुशी चुप रही ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 
ग़ज़ल 
मौत थीं सामने  ज़िन्दगी चुप रही 
दर्द के दौर मैं  हर खुशी चुप रही 

 जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को 
बंद आँखें  वही मुखबिरी चुप रही 

Comrade PREM

गाँव सबसे प्यारा #भक्ति

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महेन्द्र सिंह (माही)

#sad_shayari गाँव को कहा जरूरत हैं शहरो की तरह सजने की अगर खूबसूरती की बात करे तो यहां खेतो की हरियाली ही काफ़ी होती हैं....!! #विचार

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White गाँव को कहा जरूरत हैं शहरो की तरह सजने की 
अगर खूबसूरती की बात करे तो यहां खेतो की हरियाली ही काफ़ी होती हैं....!!

©महेन्द्र सिंह (माही) #sad_shayari गाँव को कहा जरूरत हैं शहरो की तरह सजने की 
अगर खूबसूरती की बात करे तो यहां खेतो की हरियाली ही काफ़ी होती हैं....!!

ARTI DEVI(Modern Mira Bai)

#sad_shayari #लव #शायरी #कविता Love #कॉमेडी सुप्रीम सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म आज 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद ( वर्तमान में प्रयागराज #मोटिवेशनल #subhadrakumarichauhan #subhadrakumarichauhanpoetry #subhadrakumarichauhanquotes #subhadrakumarichauhanjayanti

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tripti agnihotri

विषय -गाँव और शहर #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ... #कविता

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*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ....

पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह ।
खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।।
आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव ।
जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव ।
आओ लौट चलें अब साथी .....

स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय ।
सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।।
यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव ।
देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह ।
मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।।
अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव ।
सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी .....

झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख ।
गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।।
वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव ।
मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।।
आओ लौट चलें साथी अब ...

कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव ।
एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।।
और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव ।
अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ...

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

उपमान छन्द  दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ #कविता

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उपमान छन्द 
दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा ।
रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।।
मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा ।
मिलता नही गरीब को , थोड़ा भी चोखा ।।

खुला सुबह से आज है , ठेका सरकारी ।
जी भर पीकर देख लो , भूलो तरकारी ।।
निशिदिन जैसे आज भी , सोयेंगे बच्चे ।
बनो नही अब आप भी , कलयुग में सच्चे ।।

गाँव-गाँव यह रीति है , सब करते थैय्या ।
मेरे तो सरपंच जी , है बड़का भैय्या ।।
दिये न ढेला नोन का , बनते है दानी ।
देते भाषण मंच पर , बन जाते ज्ञानी ।।

करना आज विचार सब , पग धरना धीरे ।
बिछे राह में शूल है , हम सबके तीरे ।।
जाग गये तो भोर है , जीवन में तेरे ।
वरना राई नोन के , लेते रह फेरे ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उपमान छन्द 
दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा ।
रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।।
मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा ।
मिलता नही गरीब को , थ

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

त्रिपदा छन्द वट पीपल की छाँव । मिलती अपने गाँव । एक वही है ठाँव ।। #कविता

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White त्रिपदा छन्द

वट पीपल की छाँव ।
मिलती अपने गाँव ।
एक वही है ठाँव ।।

शीतल चले बयार ।
रिमझिम पड़े फुहार ।
चलें गाँव इस बार ।।

वह चाय की दुकान ।
उनका पास मकान ।
और हम मेहमान ।।

सुनो सफल तब काज ।
मानो मेरी बात ।
जब दर्शन हो आज ।।

धानी है परिधान ।
मुख पे है मुस्कान ।
यही एक पहचान ।।


बड़ा मधुर परिवेश ।
कुछ पुल के अवशेष ।
जोगन वाला भेष ।।

काले लम्बें केश ।
नाम सुनों विमलेश ।
चाहत उसमें शेष ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR त्रिपदा छन्द


वट पीपल की छाँव ।

मिलती अपने गाँव ।

एक वही है ठाँव ।।

_Ram_Laxman_

सुन ना जी मोर मयारु,,, यहूँ हा हमर मन के का मया हरे यार देख ना, ना मैं तोर नाव ले सको । ना ही मंय तोर नाव ला मोर कविता मा लिख सकों । ना म #Hindi #hindi_quotes #hindi_poetry #hindi_shayari #hindi_poem

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सुन ना जी मोर मयारु,,,

यहूँ हा हमर मन के का मया हरे यार
 देख ना, ना मैं तोर नाव ले सको ।

ना ही मंय तोर नाव ला मोर कविता मा लिख सकों ।
ना मंय तोर से मिले सको, ना ही बात कर सको ।

अऊ ना ही मंय तोर ऊपर मया जता सको।
ना ही मंय तोला कोनों ला बता सको ।
ना ही मंय तोर फोटू ला कोनों ला देखा सको ।

ना ही मंय, हमर दूनों झन के मया ला जनवा सको़ ।
ना मंय तोर साथ सुघ्घर मीठ भाखा गोठिया सकों ।
ना ही मंय तोर गाँव, तोर घर घूमे ला आ सको।

हमर दूनों झन के ये कईसना मया हरे यार,,, 
देख ना एक बंद पिंजरा मा धंधाये सुवा बरोबर होगे हे यार हमर मया हा,,,,


नव सिखिया लेखक ✨ राम - लक्ष्मण 😎

©_Ram_Laxman_ सुन ना जी मोर मयारु,,,

यहूँ हा हमर मन के का मया हरे यार
 देख ना, ना मैं तोर नाव ले सको ।

ना ही मंय तोर नाव ला मोर कविता मा लिख सकों ।
ना म
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