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Stories related to शेर ओ शायरी दुष्यंत कुमार

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sourabh dimri

#शेर-ओ-शायरी

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यूं नहीं के इंतजार सब का किया जाता है,
यहां जाम से पहले जहर पीया जाता है।

एक हल्की सी आहट हुई है उनके आने की
 सुना है उनकी महफिल में दर्द दिया जाता है।

आंखों में आंसू लेकर,ये किसका इंतजार है?
यहां दवा नहीं दोस्त,जख्म दिया जाता है।

इतना नाराज होना भी अच्छा नहीं होता
यहां वक्त बेवक्त हिसाब लिया जाता है। #शेर-ओ-शायरी

वैभव बेख़बर

शेर ओ शायरी #nojotophoto

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 शेर ओ शायरी

Ashish Penart

शेर ओ शायरी

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Saurabh Kalra

#शेर-ओ-शायरी

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हम अदब से पेश आते रहे 
मोहब्बत के फूल मुरझाते रहे
सख्ती थी हमारे अंदर भी,
वो अदब को हमारी कमजोरी बताते रहे #शेर-ओ-शायरी

वैभव बेख़बर

ग़ज़ल,शेर ओ शायरी

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विद्यार्थी राहुल

#दुष्यंत कुमार

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हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए!

आज ये दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी, 
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए! 

हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गाँव में, 
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए! 

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं, 
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए! 

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए!

● दुष्यंत कुमार
(1 सितंबर1933-30 दिसंबर 1975) #दुष्यंत कुमार

विद्यार्थी राहुल

#दुष्यंत कुमार

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होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए, 
इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिए! 

गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में,
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए! 

बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन,
सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिए !

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें, 
चाक़ू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए !

जिस ने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ 
इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिए!

दुष्यंत कुमार
(1 सितंबर 1933- 30दिसंबर 1975)
 #दुष्यंत कुमार

विद्यार्थी राहुल

#दुष्यंत कुमार

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होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए, 
इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिए! 

गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में,
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए! 

बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन,
सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिए !

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें, 
चाक़ू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए !

जिस ने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ 
इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिए!

दुष्यंत कुमार
(1 सितंबर 1933- 30दिसंबर 1975) #दुष्यंत कुमार

B.Bhushan

#दुष्यंत कुमार

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भारद्वाज

#दुष्यंत कुमार

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चलो कुछ गुनगुना के देखें ये शायद रात
कट जाए
ठिठुरते जिस्म की सिहरन जरा सी और
घट जाए

अब अपने मेहरबाँ से छेड़ करना भी
ज़रूरी है
भले भी शख़्सियत अपनी कई टुकड़ों मे
बँट जाए

खुदा का शुक्र है हर आदमी अब सोचता
तो है
अगर ये नींव कापें और ये दीवार हट
जाए
#दुष्यंत कुमार#पुण्यतिथि #दुष्यंत कुमार
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