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Rukhsar Khanam
भीग जाती हैं पलके तेरा नाम लेकर, तुझको ये बात मेरी समझ आती नहीं, मैं तेरे इश्क में यूं दीवानी हुई, तुझको ये मेरी दीवानगी नजर आती नहीं..!! मेरे अल्फ़ाज़✍️ ©Rukhsar Khanam #chaandsifarish #भीग जाती हैं पलके तेरा नाम लेकर, तुझको ये बात मेरी समझ आती नहीं, मैं तेरे इश्क में यूं दीवानी हुई, तुझको ये मेरी दीवानगी नजर आती नहीं..!! मेरे अल्फ़ाज़✍️
#chaandsifarish #भीग जाती हैं पलके तेरा नाम लेकर, तुझको ये बात मेरी समझ आती नहीं, मैं तेरे इश्क में यूं दीवानी हुई, तुझको ये मेरी दीवानगी नजर आती नहीं..!! मेरे अल्फ़ाज़✍️
read moreSunil itawadiya
मेरी #रूह के नैनों की खिड़की में कुछ इस तरह तुमको बुला लेता हू कैप्शन जरूर पढ़ें 🤗🤗💐 बेकार नहीं होता... मेरी #रूह के नैनों की खिड़की में कुछ इस तरह तुमको बुला लेता हूं अपनी #पलकों के परदों को मैं कुछ इस तरह से हटा देता हूं तेरी चाहत से भरे #एहसासों को
Mo Imran Siddique balrampuri
#बरस# रही थी ☂️बारिश☂️ बाहर #और वो #भीग रहा था #मुझ में.. ©Mo Imran Siddique #rain
Nikhil Kaushik
दिल की छत चढ़ने लगा है तेरी मोहोब्बत का दरिया अक्सर तुम्हारी यादों की बारिश में भीग जाता हूं मैं... ©Nikhil Kaushik #दिल की छत चढ़ने लगा है तेरी #मोहोब्बत का दरिया, #अक्सर तुम्हारी #यादों की #बारिश में #भीग जाता हूं मैं.... #HindiWritings #nojotahindi #hindiwriting #chhat
#दिल की छत चढ़ने लगा है तेरी #मोहोब्बत का दरिया, #अक्सर तुम्हारी #यादों की #बारिश में #भीग जाता हूं मैं.... #hindiwritings #nojotahindi #hindiwriting #chhat
read moreYogenddra Nath Yogi
बस भीग रहा हूं, उसकी यादों की बारिशों में। थमने का नाम नहीं लेती, आंधीयों संग बरसने में।। क्यों ऐसा होता है। दिल बार-बार किसी की , यादों में क्यों रोता है।। भीग भीग जाता हूं, जब उसकी यादों में। रोक नहीं पाता खुद को, उस गंभीर हालतों में।। तड़प भी बड़ी अजीब होती है। बेकाबू करके कभी, झुम-झुम कर खुश होती है।। अंधकार बड़ा फैला है, यादों के महलों में। कभी बरसो लग जाते, उजालों को तलाशने में।। भूल जाऊं तो कैसे, उन यादों से भीगा खड़ा, ताक रहा राह में। आंखों से आंसू भी, निकलते निकलते थक चुके, इस कहानी में। बस भीग रहा हूं, उसकी यादों की बारिशों में..... ©Yogendra Nath #OneSeason#भीग रहा हूं मैं
#OneSeason#भीग रहा हूं मैं #कविता
read morenitinchinhat
रस्म इश्क़ की यूं निभाया करो, बारिश के कतरों से, भीग जाया करो। ©nitinchinhat ✍️ By Nitin like 🤎 share ➡️ comment 👍 follow 👉 @nitinchinhat #nitinchinhat #इश्क #रस्म #बारिश
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read morepawan kr singh
"छत भीग रही है तन्हा, तुम कहा हो" --- बारिश है, मौसम है, तुम कहा हो मौका है दस्तूर है तुम कहा हो छत भीग रही है तन्हा तुम कहा हो बहुत दिन हुए बेसन को भीगे हुए तेरे माथे से लिपटे हुए रसोई सुन रही है मौसम का शोर तन्हा तुम कहा हो ओलो की झडझड मौसम की रौनक छज्जा ताक रहा है तन्हा तुम कहा को छत भीग रही है तन्हा तुम कहा हो गिले शिकवे फिर कभी मुझसे मेरी शिकायते, फिर कभी ये झमाझम बारिश ये पानी की बौछारे मिलने को तुझसे लड़ रही है खिडकी से तन्हा तुम कहा को छत भीग रही है तन्हा तुम कहा हो रचना-पवन बारिश है मौसम है तुम कहा हो छत भीग रही है तन्हा तुम कहा हो #RDV19 #right2write #IITKIRDAAR #nojotonagda #whycensored #IITkavyanjali
बारिश है मौसम है तुम कहा हो छत भीग रही है तन्हा तुम कहा हो #RDV19 #right2write #IITKIRDAAR #nojotonagda #whycensored #iitkavyanjali
read moredayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
bachpan ke din
read moreVinay Gupta
तुम्हारे पास आता था तो सांसे भीग जाती थी!! मोहब्बत इतनी मिलती थी के आंखे भीग जाती थीं!! Я๑γαℓ 👑 вαททα νïккγ