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अदनासा-
अदनासा-
Death_Lover
चूहों की दौड़ में दौड़ कर भी जीते तो क्या जीते, गधों की दौड़ में दौड़ कर भी जीते तो क्या जीते, अन्त में इस भीड़ में दौड़ कर भी जीते तो क्या जीते॥ *संघर्ष ख़ुद से* ◆परमात्मने नमः◆ ©Death_Lover #gurunanakjayanti #जागृति #आध्यात्मिक #जागरण #जागरुकता #Awareness
Death_Lover
इस मायानगरी में न ज्ञान भला, न ध्यान भला, न चलता है मान भला फिर न जाने ये माटी का पुतला(मनुष्य) क्यों करता है अभिमान भला॥ ©Death_Lover #मेरे_राम #आध्यात्मिक #जागरुकता #जागृति #माया #दोहा #मायानगरी #संसार #छलावा #Meditation
Sita Prasad
एक ही है- उत्पादन बन्द करना, जब तक प्लास्टिक का उत्पादन बन्द नहीं होगा, आप खरीदार को दोषी नहीं ठहरा सकते। आजकल, खरीदार से कहा जाता है, भटको मत। फिर हर जगह बड़े- बड़े विज्ञापन छापते जाते है। दस रुपये के कुरकुरे या टेढ़े-मेढ़े या लेज के पैकेट में शायद पचास या पचपन ग्राम खाने की चीज होती है। पांच रुपये वाले में शायद बीस ग्राम। खाने की यह चीज कुछ सेकेंड में खतम हो जाती है। लेकिन, जिस चीज में यह पैक करके आती है, वह हजारों सालों में खतम नहीं होती। जाहिर है कि प्लास्टिक उन कुछ चीजों में शामिल है जो इंसानियत के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। लेकिन, फिलहाल तो यह आधुनिकता और संपन्नता की प्रतीक है। अब दिल्ली को ही लीजिए। देश की राजधानी में प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन राष्ट्रीय औसत
दस रुपये के कुरकुरे या टेढ़े-मेढ़े या लेज के पैकेट में शायद पचास या पचपन ग्राम खाने की चीज होती है। पांच रुपये वाले में शायद बीस ग्राम। खाने की यह चीज कुछ सेकेंड में खतम हो जाती है। लेकिन, जिस चीज में यह पैक करके आती है, वह हजारों सालों में खतम नहीं होती। जाहिर है कि प्लास्टिक उन कुछ चीजों में शामिल है जो इंसानियत के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। लेकिन, फिलहाल तो यह आधुनिकता और संपन्नता की प्रतीक है। अब दिल्ली को ही लीजिए। देश की राजधानी में प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन राष्ट्रीय औसत #YourQuoteAndMine #हिंदी_साहित्य #जागरुकता #जंगलकथा #जंगलमन #कबीर_संजय
read moreShiv k Shriwas
मित्रों, आज वैश्विक परिदृश्य में विश्व अत्यंत संकटकालीन परिस्थितियों से जूझ रहा है।मानो पूरी दुनिया स्थिर हो चुकी हो।मानवजीवन अशांत एवं भयभीत महसूस कर रहा है।चंद दिनो पूर्व जो मनुष्य स्वयं को धरा का संचालक एवं प्रकृति को अपनी ईच्छानुरुप ढ़ालने का दुस्साहस कर रहा था,आज प्रकृति के प्रकोप से असहाय महसूस कर रहा है।विशेषकर हमारे देश मे प्राचीनकाल से ही प्रकृतिपूजा एवं प्रकृति से मित्रवत व्यवहार करने की परंपरा रही है।परंतु पाश्चात्य संस्कृति के हावी होने एवं अंधानुकरण की वजह से पिछले कई दशकों से प्रकृति से हमारा तारतम्य विफल होते जा रहा है।प्रकृति के विरुद्ध कार्य करने की मानवीय प्रवृति मे इजाफा हुआ है,परिणामस्वरुप वैश्विक आपदा,महामारी या प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। मित्रों अभी भी वक्त है पृथ्वी को सुंदर,खुशहाल,व स्वस्थ रखने हेतु प्रत्येक नागरिक, नैतिकता, मानवता एवं विश्वहीत के लिए प्रतिबद्ध होकर प्रकृति के अनुकुल कार्य करें ताकि कोरोना वायरस जैसे वैश्विक महामारी का सामना भविष्य मे ना करना पड़े। आइए हम सब मिलकर जनहित एवं राष्ट्रहित के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करें। Shiv k Shriwas #जागरुकता ही बचाव है# coronavirus##
#जागरुकता ही बचाव है# coronavirus##
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