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Mangesh Dongre (Prem)

सुबह के 8 बज ही रहे थे के मोबाईल का अलार्म चालू हो गया । आवाज ईतना तेज था की कानों के पर्दे जैसे फटे जा रहे थे । 😫 उसे बंद करके प्रेम फिरसे सो गया के अचानक उसे याद आया के आज से तो उसके कॉलेज की एग्जाम Start हो रही है । जैसे तैसे उठकर वो 9:30 तक कॉलेज पहुँचा तबतक एग्जाम चालू हो गयी थी ।🙄 भागते भागते वो Exam Hall में पहुँचा और अपनी Seat के पास जाकर अचानक से ऱुक गया । वाह, क्या नजारा था ।😍 आज पहली बार उन जैसे Single लौंडो के बगल में 1st Year की लडकिया बैठी थी,😎 जो कभी Cu

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Story No.: 01

Supriya सुबह के 8 बज ही रहे थे के मोबाईल का अलार्म चालू हो गया । आवाज ईतना तेज था की कानों के पर्दे जैसे फटे जा रहे थे । 😫 उसे बंद करके प्रेम फिरसे सो गया के अचानक उसे याद आया के आज से तो उसके कॉलेज  की एग्जाम Start हो रही है । जैसे तैसे उठकर वो 9:30 तक कॉलेज पहुँचा तबतक एग्जाम चालू हो गयी थी ।🙄 भागते भागते वो Exam Hall में पहुँचा और अपनी Seat के पास जाकर अचानक से ऱुक गया । वाह, क्या नजारा था ।😍 
                          आज पहली बार उन जैसे Single लौंडो के बगल में 1st Year की लडकिया बैठी थी,😎 जो कभी Cu

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं हिंदी हूँ।। मैं हिन्द की ज़ुबान हूँ, मैं ही गती मैं प्राण हूँ, मैं संस्कृति का बोध हूँ, मैं ही अभेद्य त्राण हूँ। मैं शर तिमिर को भेदती, #kavita #hindidivas

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मैं हिंदी हूँ।।

मैं हिन्द की ज़ुबान हूँ,
मैं ही गती मैं प्राण हूँ,
मैं संस्कृति का बोध हूँ,
मैं ही अभेद्य त्राण हूँ।

मैं शर तिमिर को भेदती,
मैं गीता सार वेद सी,
समर में शंख की ध्वनि,
मैं ही अचूक बाण हूँ।

मैं ही गरीब पेट हूँ,
मैं हो तो धन्ना सेठ हूँ,
हुंकार भी पुकार भी,
मैं ही स्वतंत्र गान हूँ।

लिए पताका चल रहा,
जो खाली पांव जल रहा,
पताके पे जो छप रहा,
मैं ही विरोध भान हूँ।

हूँ कृष्ण का अवतार में,
हूँ राम जग को तार मैं,
पूजा हवन ये गोष्ठी,
मैं ही ज्वलन्त ज्ञान हूँ।

हूँ निर्बलों का स्वर भी मैं,
निशाचरों का डर भी मैं,
मैं सप्त-अश्व सूर्य का,
प्रखर प्रकाशमान हूँ।

मैं ही दधीचि अस्थियां,
मिटती असुर ये बस्तियां,
प्रहार हूँ मै वज्र सा,
मैं ही सुगम सुजान हूँ।

हूँ भेद बंध तोड़ता,
मनुज मनुज को जोड़ता,
अंतहीन और अनन्त,
मैं क्षितिज समान हूँ।

मैं हिन्द की ज़ुबान हूँ,
मैं ही गती मैं प्राण हूँ,
मैं संस्कृति का बोध हूँ,
मैं ही अभेद्य त्राण हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं हिंदी हूँ।।

मैं हिन्द की ज़ुबान हूँ,
मैं ही गती मैं प्राण हूँ,
मैं संस्कृति का बोध हूँ,
मैं ही अभेद्य त्राण हूँ।

मैं शर तिमिर को भेदती,

vishnu thore

चांदणे शब्दातले उजळे सहज ज्यांचे स्मरण आग ह्रदयातील शब्दा पोळते ज्यांचे स्मरण.. अमरावतीतील कर्‍हाडे ब्राह्मणांचं एक सुखवस्तू घराणं. त्यातील रंगनाथचा एक मुलगा श्रीधर डॉक्टर झाला. पण तो बहिरा होता आणि दुसरा मुलगा वेडा होता. श्रीधरचं लग्न झालं. बायको शांता ही अतिशय मनमिळाऊ होती. तिला कवितांची खूप आवड. रंगनाथ-शांताला लग्नानंतर १५ एप्रिल १९३२ रोजी मुलगा झाला. उभयंतांनी मुलानं सूर्यासारखं चमकावं म्हणून हौशीनं नाव ठेवलं सुरेश! हळूहळू सुरेश मोठा होत होता. पण तो अडीज वर्षांचा झाल्यावर त्याला पो

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 चांदणे शब्दातले उजळे सहज ज्यांचे स्मरण 
आग ह्रदयातील शब्दा पोळते ज्यांचे स्मरण..

        अमरावतीतील कर्‍हाडे ब्राह्मणांचं एक सुखवस्तू घराणं. त्यातील रंगनाथचा एक मुलगा श्रीधर डॉक्टर झाला. पण तो बहिरा होता आणि दुसरा मुलगा वेडा होता. श्रीधरचं लग्न झालं. बायको शांता ही अतिशय मनमिळाऊ होती. तिला कवितांची खूप आवड. रंगनाथ-शांताला लग्नानंतर १५ एप्रिल १९३२ रोजी मुलगा झाला. उभयंतांनी मुलानं सूर्यासारखं चमकावं म्हणून हौशीनं नाव ठेवलं सुरेश! हळूहळू सुरेश मोठा होत होता. पण तो अडीज वर्षांचा झाल्यावर त्याला पो

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
13 - ज्ञानी

आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।।
कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।। 'तुम काश्मीर से स्वास्थ्य सुधार आये?' श्रीस्वामीजी ने समीप बैठे एक हृष्ट-पुष्ट संम्भ्रान्त नवयुवक से पूछा। 'जी, अभी परसों ही घर लौटा हूँ। लगभग छ: महीने लग गये वहाँ। बड़ा रमणीक प्रदेश है।' युवक संभवत: बहुत कुछ कहना चाहता था। #Books

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|| श्री हरि: ||
13 - ज्ञानी

आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।।
कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

'तुम काश्मीर से स्वास्थ्य सुधार आये?' श्रीस्वामीजी ने समीप बैठे एक हृष्ट-पुष्ट संम्भ्रान्त नवयुवक से पूछा।
'जी, अभी परसों ही घर लौटा हूँ। लगभग छ: महीने लग गये वहाँ। बड़ा रमणीक प्रदेश है।' युवक संभवत: बहुत कुछ कहना चाहता था।


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