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अदनासा-

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अदनासा-

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Nilam Agarwalla

Gurudeen Verma

White शीर्षक- हे वतन तेरे लिए
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हे वतन तेरे लिए, हे वतन तेरे लिए।
अर्पण है जीवन हमारा, यह किसके लिए।।
हे वतन तेरे लिए---------------------।।

नहीं हमारा स्वार्थ कुछ, नहीं कोई और ख्वाब है।
तू रहे आबाद हमेशा, यही हमारा ख्वाब है।।
वीरों ने दी कुर्बानी, लेकिन वह किसके लिए।
हे वतन तेरे लिए--------------------।।

तू ही मालिक है हमारा, तू ही रहबर हमारा।
तू ही पूजा है हमारी, तू ही मंदिर हमारा।।
माँगते हैं हम दुहायें, रब से किसके लिए।
हे वतन तेरे लिए----------------------।।

नहीं किसी से प्यार इतना, जितना चाहते हैं तुम्हें।
सबसे प्यारा तू है हमें, यकीन हो हम पर तुम्हें।।
रोशन ये चिराग किये हैं, हमने मगर किसके लिए।
हे वतन तेरे लिए---------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आजाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक- जलजला, जलजला, जलजला आयेगा
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(शेर)- दे रही है संकेत हवा भी अब, शायद तूफ़ान आयेगा।
       होगा हर तरफ तबाही का मंजर, ऐसा भूचाल आयेगा।।
      शायद ही जिन्दा रहे मोहब्बत, जमीं पर किसी इंसान में।
     नफरत- दुश्मनी,हिंसा का कलयुग, अब जमीं पर आयेगा।।
------------------------------------------------------------------------
तप रही है जैसे धरती,आज इतनी आग से।
आ रही है यही ,अब हर राग से।।
आने वाला वक़्त कैसा काल लायेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

बेशर्म और लापरवाह, जब घर का मुखिया होगा।
भूख- प्यास से तड़पता, हर कोई घर में होगा।।
ऐसा ही मंजर नजर जब, देश में आयेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

कर लेंगे बन्द, आँख- कान- मुँह लोग जब।
यकीन दुराचारियों पर, करने लगेंगे लोग जब।।
भ्रष्टाचारी- पापियों का जब, राज हो जायेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

सरेराह होंगे चिरहरण, मूकदर्शक शासक होगा।
थानों- अदालतों पर जब, हैवानों का कब्जा होगा।।
अन्याय- रावण राज पर, नीरो जब बंशी बजायेगा।।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

पाने को शौहरत- दौलत, कलमकार बिकने लगेंगे।
गरीबी- बेरोजगारी पर जब, लिखने से डरने लगेंगे।।
असत्य का गुणगान जब,मीडिया भी गाने लगेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।
तप रही है जैसे धरती------------------।।

जाति- धर्म- क्षेत्र के जब, बलवें होने लगेंगे।
नफरत- दुश्मनी के जब, बीज बोने लगेंगे।।
रक्तबीजों- नरपिशाचों से, कैसा कलयुग आयेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती----------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - चमन यह अपना, वतन यह अपना
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चमन यह अपना, वतन यह अपना।
आबाद रहे कल भी, घर यह अपना।।
अपनी ये खुशियां, अपनी ये मौजें।
रोशन रहे कल भी, जीवन यह अपना।।
चमन यह अपना----------------------।।

तुमको क्या मिलेगा, ऐसे लड़ने से।
दुश्मनी ही बढ़ेगी, ऐसे लड़ने से।।
छोड़ो हठ यह तुम, भूलों दुश्मनी तुम।
जिन्दा रहे कल भी, याराना यह अपना।।
चमन यह अपना--------------------।।

गंगा- यमुना की यह, पवित्र जलधारा।
प्रहरी वतन का, यह हिमालय हमारा।।
सीखें हम सब भी, इनसे सरफरोशी।
सलामत रहे कल भी, वजूद यह अपना।।
चमन यह अपना--------------------।।

नेक मंजिल हो, अपने मकसद की।
सही सोहब्बत हो, अपने जीवन की।।
अमन यह अपना, ख्वाब हर अपना।
मुकम्मल रहे कल भी, गौरव यह अपना।।
चमन यह अपना--------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

#साहित्यकार (ताकि अपना नाम यहाँ, कल भी रहे) #कविता

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White शीर्षक- ताकि अपना नाम यहाँ, कल भी रहे
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ताकि अपना नाम यहाँ, कल भी रहे।
ताकि याद हम यहाँ पर, कल भी रहे।।
अपने निशां बाकी, कल भी रहे यहाँ।
करें ऐसा काम ताकि, सब खुश रहे।।
ताकि अपना नाम ---------------------।।

यही वरदान माँगे, हम भगवान से।
हमेशा रहे दूर, हम बुरे काम से।।
जिंदगी हमारी यहाँ, बदनाम नहीं हो।
ताकि हमारा मान, कल भी रहे।।
ताकि अपना नाम -------------------।।

कोशिश हमारी ऐसी, यहाँ पर हो।
चोट किसी दिल पे, हमसे नहीं हो।।
कम करना सीखें हम, दर्द किसी का।
ताकि कोई शिकायत, हमसे नहीं रहे।।
ताकि अपना नाम ---------------------।।

समझे नहीं किसी को, पराया कभी यहाँ।
मिलकर रहे सभी से, अपने हैं सब यहाँ।।
अपनी इस जमीं को, क्यों हम बांटे।
कर्म हम वतन के लिए, करते रहें।।
ताकि अपना नाम ---------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार (ताकि अपना नाम यहाँ, कल भी रहे)

Gurudeen Verma

White शीर्षक - तारीफ तेरी और, क्या हम करें
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तारीफ तेरी और, क्या हम करें।
कैसे तुम्हारा दिल, खुश हम करें।।
तुम्हारे सिवा हमको, नहीं है पसंद और।
तारीफ तेरी और------------------।।

यूँ तो हजारों फूल, गुलशन में हैं।
रोशन चिराग यहाँ, और भी है।।
मगर इतने हसीन ये, लगते नहीं।
होता नहीं है दिल, खुश और से।।
तारीफ तेरी और-----------------।।

सूरत तुम्हारी यहाँ, माहताब सी।
रोशन हो तुम, यहाँ आफ़ताब सी।।
महकते हैं फूल, जब तुम हंसती हो।
नूर जहां में तेरे जैसा और नहीं।।
तारीफ तेरी और-------------------।।

सरुर जो, तुम्हारी नज़रों में है।
नहीं ऐसी खूबी, औरों में है।।
मेरे दिल का ख्वाब, तुम ही हो।
तुम्हारे सिवा मोहब्बत, और से नहीं।।
तारीफ तेरी और-------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - इसकी वजह हो तुम, खता मेरी नहीं
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(शेर)- यह एक ऐसी कहानी है, जो खत्म कभी नहीं हो सकती।
           यह पहेली है कुछ ऐसी, जो बुझ कभी नहीं सकती।।
         तुम भूल सकते हो वो पल, वो दिन अपनी मुलाकात के।
         मगर यह नजीर उस वक़्त की, कभी मिट नहीं सकती।।
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इसकी वजह हो तुम, खता मेरी नहीं।
यह कहानी ऐसी, यार बनती नहीं।।
अब इसका अंत, कोई नहीं। कोई नहीं।।
इसकी वजह हो तुम--------------------।।

इतने नाराज हमसे, तुम क्यों हुए।
अपने होकर भी दूर, तुम क्यों हुए।।
यकीन था हमें तो, तुम पर बहुत।
हमपे यकीन तुमको, था कुछ नहीं। था कुछ नहीं।।
इसकी वजह तुम हो-------------------।।

तेरी बुराई जो, करते थे बहुत।
उनसे तुम प्यार, करते थे बहुत।।
बदनामी तुम्हारी, किसने की है।
हमने तो फजीहत, की थी नहीं। की थी नहीं।।
इसकी वजह हो तुम-------------------।।

हम तो दुश्मन बने, तुम्हारे लिए ही।
लहू हमने बहाया, तुम्हारे लिए ही।।
फिर भी हमको बदनाम, तुमने किया।
यह जख्म दिल पे, मिट सकता नहीं। मिट सकता नहीं।।
इसकी वजह हो तुम---------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - सोचते हो ऐसा क्या तुम भी
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जैसा कि सोचते हैं हम।
सोचते हो ऐसा क्या तुम भी।।
चाहता है दिल तुम्हें जैसा।
चाहते हो हमें क्या तुम भी।।
जैसा कि सोचते हैं -----------------।।

तारीफ हम तुम्हारी, कितनी करते हैं।
और से प्यार इतना, नहीं करते हैं।।
देखते हैं खूबी, जैसी तुझमें।
देखते हो खूबी हममें, क्या तुम भी।।
जैसा कि सोचते हैं-------------------।।

करता है हमको दीवाना, हँसना यह तेरा।
कितना सुंदर दिलकश है, रूप यह तेरा।।
आते हैं जैसे ख्वाब, तुम्हारे हमको।।
देखते हो हमारे ख्वाब, क्या तुम भी।।
जैसा कि सोचते हैं----------------------।।

मानते हैं तुमको हम, बहारे- खुशी।
करीब पाकर दिल भी, होता है हसीं।।
लिखते हैं खत जैसे, तुमको हम।
लिखते हो हमको खत, क्या तुम भी
जैसा कि सोचते हैं-------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार
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