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अपर्णा विजय
।। गांव छोड़ आया ।। सुकून की चाह में गांव छोड़ आया पीपल की ठंडी छांव छोड़ आया मां के आंचल की पनाह छोड़ आया बाबा का प्यार और बाँह छोड़ आया कच्चे मकान की ठाँव छोड़ आया शहर की चाह में गांव छोड़ आया आम पर कोयल की कूक छोड़ आया चूल्हे पर अपनी भूख छोड़ आया मिट्टी का घड़ा और प्यास छोड़ आया चौका डेहरी मुंडेर उदास छोड़ आया पलाश के वो सारे रंग छोड़ आया जीने के तरीके और ढंग छोड़ आया कांधे पर यारों के हाँथ छोड़ आया रिश्तो की डोर और साथ छोड़ आया मधुर बयार का गीत छोड़ आया बचपन का अपना मीत छोड़ आया आंगन मे तुलसी और खाट छोड़ आया सितारों से भरी वो रात छोड़ आया कंचे की बाजी और जीत छोड़ आया तीज त्योहारों की रीत छोड़ आया वो तालाब पगडंडी खलिहान छोड़ आया ख़प्पर का कच्चा मकान छोड़ आया पीतल के अपने वो राम छोड़ आया बापू की छोटी दुकान छोड़ आया गांव में मैं अपनी जान छोड़ आया बचपन का अपना वो नाम छोड़ आया।।।।। ©अपर्णा विजय ©अपर्णा विजय #मेरा गांव
Yogendra Singh Yogi
शहर की तरफ गया तो था लेकिन मुझे मेरा गांव ही अच्छा लगा। ©Yogendra Singh Yogi मेरा गांव
मेरा गांव #Quotes
read moreAjay Kishor
"कितना सुंदर कितना प्यारा है मेरे गांव का ये दृश्य" "प्रकृति की गोद मै बसा हुआ एक छोटा _सा गांव मेरा" "बांज _बुराश के जड़ों का ठंडा पानी मेरे गांव मैं लगता है अमृत जैसा" "खेतों मै लहराती मंडवे _झंगोरे की फसल शोभा बढ़ती है गांव की मेरी " "टेढ़े मेढे सीढ़ीनुमा खेतों के बीच बसा हुआ है गांव मेरा प्रकृति को सुशोभित करता है गांव मेरा" "घस्यारियो _ग्वालों का वे वन मै गीत गुनगुना प्रतीत हो सरस्वती की वीणा से निकला संगीत गांव मै मेरे" "होली _दीपावली पर मिलजुलकर नाच _गाना करना कितना अदभुत है ये नजारा गांव का मेरा" "ऊंचे _ऊंचे झरनों से गिरता हुआ पानी की मधुर ध्वनि सुनाई देती है गांव मैं मेरे " "वे चिड़ियों का चहचहाना वे कोयल का कुकू करना अति सुंदर सा संगीत सुनाई देता है गांव मैं मेरे" "प्रातः काल मैं वे सूर्य कि किरणों का वे बर्फिली चोटियों से मिलाप करना स्वर्ण_ नगरी सा प्रतीत होता है गांव मेरा " ( A.K .shaha ) ©Ajay Kishor मेरा गांव
मेरा गांव #कविता
read moreAnil Rameshwar
वो गाँव की मिट्टी की खुसबू यारों के साथ बीता हुआ वक्त इस घूमंत्र जीवन में इस कदर बस गया है कि अब मन करता है हमेशा उन्हीं पलों में जीता रहूँ.. ©Anil Rameshwar मेरा गांव
मेरा गांव
read moreNavin Gupta
तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है, और तू मेरे गांव को गँवार कहता है । ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है, तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है । थक गया है हर शख़्स काम करते करते , तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है। गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास , तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है । मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं , तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है । जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा, तू उन माँ बाप को अब भार कहता है । बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में, पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है । ____________________________ संपूर्ण - अज्ञात #मेरा गांव
#मेरा गांव
read morevikas dev dubey
v"मेरा गाँव"d कितने सुकुन से मैं अपनी जिंदगी जी रहा था,, अपने गाँव के गलियारों में,, निर्भिक ,स्वतंत्रता से ओछल था मैं गाँव की गलियारों में,, जिंदगी प्यारी लगाने लगी थी,खुले आसमानो से बाते कर रहा था मैं,, खेतो की हरियाली उमंग भर देती थी ,हमारे जिस्मो जहान को,, बादल की गरज,मयूर का नाचना,मेढक का उछल उछल के गीत गाना, बारिश की रिमझिम घटा, स्वच्छ हवा देख के मैं अभिभूत हो जाता था,, गाँव तू मुझे बहोत याद आता है,, सरसो के खेत थे जब लहलहाते, चना बाजरा के दिन थे याद आते,, देख के मैं अपने गाँव की हरियाली ,ख़ुशी से झूम उठता था,, गाँव मैं तुझसे बहोत प्यार करता था,, तेरे साथ रहने की ख्वाहिशे बुनता था,, गाँव मैं तुझे बहोत याद करता था,, "vikas dev dubey" मेरा गांव #StarsthroughTree
मेरा गांव #StarsthroughTree
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