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Pavan Sharma
देख ये मंज़र, कैसे जी रहा इंसान.. एक हाथ में बच्चा, एक में जान कुछ तो रहम कर, कुछ तो बता रास्ता सिर्फ इनकी अकेले की तो नहीं कोई खता...। #प्रवासी मजदूर @pavan #प्रवासी मजदूर
#प्रवासी मजदूर
read moreParasram Arora
काश इन पीड़ित अभागे प्रवासी मजदूरों को उजालों भरी जिन्दगी मिल जाती जो अंधेरों मे रहते रहते देखने की सामर्थ्य खो चुके हैँ जो विवश है. भूखे पेट नंगे पाँव पैदल चल कर . अपने गांव तक की लम्बी दूरी तय करने को... किस बुरी तरह . पथरा चुके हैँ उनके खुशक होंठ. और जो बिना पतवार की किश्ती मे बैठ मझधार मे डूबने का मन बना चुक़े हैँ आश्चर्य उनकी सुध लेने ये. राजतंत्र अ भी तक मूक और असंवेदनशील बना हुआ हैँ अभागे प्रवासी मजदूर.......
अभागे प्रवासी मजदूर.......
read moreAMIT
ये बोझिल कदमों की आहट.. ये उखड़ी सांसे..ये घबराहट, ये सूखे गले..ये उघड़े बदन.. ये जलती धरती..ये तीखी तपन, है सर के बोझ में पूरा घर.. आंखें पत्थर हैं.. दिल पत्थर, बहते आंसू.. रोती माएं.. भूखे बच्चे.. उनकी आहें, निर्धन होकर क्या जुल्म किया, हमही जाने.. जो हमने सहा, यहां पीछे क्या-क्या छूट गया, सालों का रिश्ता टूट गया, ये गांव का रास्ता पूछ रहा, क्यूं घर लौटे.. क्या सूझ रहा, ना काम यहां.. ना पैसा है, यहां जीना.. मरने जैसा है, किसकी नाकामी.. लाचारी है, हम किसकी जिम्मेदारी है..? -------अमित प्रवासी मजदूर..
प्रवासी मजदूर..
read moreSudhakar Singh
।।।जो सूट बूट मे आया था ।डालर और पाऊंड लाया था।दिरहम दीनारी थैलों मे बीमारी वही छुपाया था।वो कुलीन अभिजात्य वर्ग जिनको विदेश ही प्यारा था। जो भागे थे इस माटी से इसमें क्या दोष हमारा था। जिनके उदरो का खालीपन ये देश नही भर पाया था। उसको तुमने क्यों नही धरा जो इस विषधर को लाया था। अपने जीवन का लक्ष्य महज दो रोटी पर ही घूम रहा । हम जैसो के खून पसीनो पर जो पिये बार झूम रहा। उसका इतना महिमामंडन जो दबे पांव घुस आया था। मिट्टी गारे मे सन सन करके हमने जो शहर बनाया था। जब वक्त पड़ा तो पता चला वो अपना नही पराया था। हम मलिन लोग गंधाते थे तुमको कब कंहा सुहाते थे। लंबी दीवारों के पीछे तुमने ही हमे छुपाया था।अब शहर शहर और नगर नगर हर तरफ भीड़ का रेला है। मुफलिसी गरीबी का जमघट भूखे नंगो का मेला है।कितना इसको ढक पाओगे ।इन सबको कंहा छुपाओगे। हमने इस मिट्टी को चाहा शहरों को आबाद किया। अपने खून पसीने से इस देश को जिंदा बाद किया। मेरा सपना बस रोटी थी मैं वही कमाने आया था। पर ये जो पीड़ा मुझे मिली उसका हकदार पराया था।।जिनके थे उदर बहुत गहरे जो यंहा नही भर पाया था। उससे भी सवाल जरूर करना जो इस महा प्रलय को लाया था।। प्रवासी मजदूर#
प्रवासी मजदूर#
read moreDR. LAVKESH GANDHI
देख कर प्रवासी मजदूरों की वेदना रूह सिहर उठती है भटकते मजदूरों की व्यग्रता देख कर दिल काँप उठता है भूखे-प्यासे मजदूरों को देख कर बेचैनी से मन व्यथित हो उठता है फिर मजदूरों की व्यथा देख कर सरकारें न जाने क्यों आँखें मूंद बैठी है #प्रवासी मजदूर # #मजदूरों_की_मजबूरियां # #yqmajbur #yqmajdur#
प्रवासी मजदूर # मजदूरों_की_मजबूरियां # yqmajbur yqmajdur#
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