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Vikas Kumar Chourasia
White हम इंसानों की तुम बात ना पूछो दौड़ते-भागते, हाँप रहे हैं कतार लगी है अंधों की इस अंधी दौड़ में, सब भाग रहे हैं उलझे-सुलझे, फिर से उलझे यहाँ-वहाँ बस ताक रहें हैं मकसद अपना छोड़-छाड़ के अंधी दौड़ में सब भाग रहे हैं होड़ लगी है बड़ा दिखने की बड़ी-बड़ाई, सब हाँक रहे हैं दिखावे के इस दौर में देखो अंधी दौड़ में सब भाग रहे हैं भागो जितना भाग सको कहीं गिर जाओ, तो रुक जाना रुक के खुद से बातें करना खुद को थोड़ा समझाना मजदूर नहीं जो भाग रहे हो गुलाम नहीं जो जाग रहे हो राजा हो तुम अपने मन के अंधों की दौड़ में, क्यों भाग रहे हो ? ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी hindi poetry hindi poetry on life poetry
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White 'यादें' भी 'परछाई' हैं चलती तो साथ हैं पर हाथ नहीं आती लगातार होती हैं कोशिशें, भुलाने की पर कमबख्त अपनी हरकतों से, बाज़ नहीं आती 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
White सपने, वादे, इरादे सब परिंदे हैं खुले आसमान के कुछ को मंजिल हासिल होगी कुछ तूफ़ान में बिखर जायेंगे इनके होने ना होने का मलाल कैसा शेष ही तो बची हैं, कुछ धड़कने फिर हम भी सिमट जायेंगे 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
बहुत बारीकीयों से, नज़र रखनी पड़ती है खूबसूरत वादियों की दिल से, कदर करनी पड़ती है इन्हीं में तो छुपा है, एक समंदर सुकून का हम ज़िंदा हैं या मुर्दा समय-समय पर खबर, इसकी भी रखनी पडती है 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
ज़ब लाठी की अवस्था में पहुँच जाऊँगा याद करुँगा गुजरे लम्हें तरह-तरह से गले लगाऊँगा आँखों की दीवारों पर भूले-बिसरे चित्र सजाऊँगा मधुर सुनहरे पलों को चखकर मीठे फलों सा लुफ्त उठाऊँगा ढेर लगाकर यादों की मन के आँगन में भी बिखराऊँगा खोया क्या और पाया क्या इसका सही हिसाब लगाऊँगा तब याद करुँगा, सब फुर्सत से ज़ब लाठी की अवस्था में पहुँच जाऊँगा 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
या यूँ कहें कुछ सवालों का जवाब नहीं होता कब, कैसे, कहाँ इसका हिसाब नहीं होता घट जाती हैं, जिंदगी में कुछ चीजें खुद-ब-खुद इन पर किसी का अधिकार नहीं होता इनका कोई गुनहगार नहीं होता 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
हटा नहीं डरा नहीं बस यूँ समझ, लड़ा नहीं थका नहीं झुका नहीं बस यूँ समझ, लड़ा नहीं हार मैंने मान ली ना ये समझ हरा दिया स्वभाव से तो रौद्र था बस खुद को ही बुझा दिया अब खुद को ही बुझा दिया 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
ये जंगल, ये पहाड़ बहती नदियाँ, गिरते झरने "सुकून बहुत देता है" अब तुम कहोगे, ये सब कुछ दिन का ही है हाँ, जो भी हो "सुकून बहुत देता है" ज़ब-ज़ब इनके करीब जाता हूँ कोई अपना सा मुझे खींचता है ज़ब-ज़ब वहाँ से उठ के आता हूँ ऐसा लगता है, उधड़ रहा हूँ अब तुम कहोगे, ये सब कुछ दिन ही अच्छा लगता है हाँ, जो भी हो पर "सुकून बहुत देता है" 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
शीर्षक- खुले आकाश में (लोरी) लेखक- विकास कुमार चौरसिया जबलपुर म.प्र. आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में वहाँ तारे झिलमिलाते, अंधेरों के साथ में हमको भी सिखलाते, कैसे खिलते हैं रात में डरना कभी ना, विश्वास खुद पे रखना नाज़ तुझपे दुनिया करे, ऐसी राह चलना आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में सूरज की रोशनी, एक तेज़ हम पे भरती है दूसरों की ख़ातिर ही रोशनी बिखरती है तुमको भी सेवा, ऐसी ही कुछ करनी है मनुष्य की ये ज़िंदगी, इसलिये तो मिलती है आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में चाँद की शीतलता भी, हमसे ये कहती है रहना तुम भी शीतल से, राह चाहे जैसी हो संसार के समंदर में, ठहराव रखना सीख लो निष्काम भाव से तुम, सब काम करना सीख लो आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में सारी दुनिया से दूर, नये आकाश में आ तुझे ले चलूँ खुले आकाश में ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी
Vikas Kumar Chourasia
पतझड़ आने पर, ये हरे-भरे जंगल श्मशान नज़र आते हैं अँधेरी रातों में, दौड़ते-भागते रास्ते सुनसान नज़र आते हैं उड़ चले हैं पंछी, अपने आसियाँ छोड़ कर अब सारे घोंसले गुमनाम नज़र आते हैं और धुंधला चुकी है भीड़ में, मेरी पहचान इस तरह के मानो हम अपने ही घर में, मेहमान नज़र आते हैं 🍁विकास कुमार🍁 ©Vikas Kumar Chourasia #Khamoshi_ख़ामोशी