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Vidhi

मेरे वो चार जोड़ी कपड़े बेहद खास हैं
एक नीली फ्रॉक है,
जिसे लेने को खूब उधम मचाया था
जब मैं उसे पहन कर मोहल्ले में इतराती फिर रही थी
पापा की जेब में उधार के वही 500 रुपये थे
जिससे वो राशन के बदले फ्रॉक ले आये थे
दूसरी मेरे स्कूल की वो स्कर्ट प्यारी है
जिसे मैं बड़े प्यार से तह करती
जिसके घेरे में पहली बार मैंने
बचपन से यौवन की पहेली समझी
कमर की चौड़ाई, और वो दाग के छींटें
उसमें लगे नीली काली स्याही के निशान
तीसरा मेरा महँगा सा कुर्ता
मेरे बड़े भैया ने बड़े चाव से दीवाली पे खरीदा
वो शायद पहला लम्हा था
जब किसी ने मुझे खूबसूरत कहा था
और वो ही मौका था,
जिसमें किसी ने उसे मेरे तन से खींचा था
दर्द, अपमान, घुटन, चुप्पी को सहता वो मेरा वो चमकीला कुर्ता
जिसे मैंने एक दिन उतार फेंका
उस दिन से पहना मैंने अपना चौथा और आखिरी कपड़ा
साँवला, दागों से भरा अनचाहा बेमर्जी का वो टुकड़ा
पहली बार मुझसे बाखुशी आ कर लिपटा
 #YQbaba #YQdidi #कपड़ा

Anjali Raj

तन की गरीबी कपड़ा लेते ही झट से छुप जाय
मन की गरीबी  कपडे में भी उघरत-उघरत जाय #YQdidi #गरीबी #तन #मन #कपड़ा #आहज़िन्दगी #myquote #अंजलिउवाच

Atal Ram Chaturvedi

#कपड़ा

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नमस्कार मित्रो

©Atal Ram Chaturvedi #कपड़ा

Rahul Singh

#Quote

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पहले के समय हमारी जरूरते केवल रोटी,कपड़ा और मकान थी, पर अब हमारी जरूरते है-
रोटी, कपड़ा, मकान, इंटरनेट और सेक्स।

Pourushi

#OpenPoetry पहली #दफ़ा ...
गज भर की साड़ी पहनी गई ...
स्कूल की विदाई पार्टी में..
वो साड़ी थी #आज़ादी की उड़ान...
ख़ुद की इच्छा से बाँधी साड़ी...
#पाँव फँसे तो सबने कहा...
"ज़रा सम्भलकर"....!
फिर पहनी ...
गज भर की साड़ी #शादी के बाद..
इस दफ़ा साड़ी को मैंने नहीं 
#साड़ी ने मुझे बाँधा..
आज़ादी की उड़ान ..
ज़मीं पर रोक दी गई..
पाँव #फँसे तो सबने कहा...
"इतना भी नहीं सम्भाल सकती"...
फ़क़त एक #कपड़ा ही तो था...
बस मायने बदल गए वक़्त के साथ....! #OpenPoetry

Roopanjali singh parmar

आजकल कपड़े खरीदने जाओ तो विशेष रूप से कहना पड़ता है..
भाई वही कपड़ा दिखाना जिसमें 'कपड़ा' हो।

shuny manthan

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यह तो वही बात हुई कि जैसे किसी ने कपड़ों की एक गुड़िया बनाई हो, और हम एक—एक कपड़ा निकालते चले जाएं। एक कपड़े को निकालें, दूसरा कपड़ा बचे। उसे निकालें, तीसरा निकल आए। निकालते चले जाएं, लेकिन कपड़े की ही गुड़िया हो तो आखिर में सब कपड़े निकल जाएंगे, गुड़िया पीछे बचेगी नहीं। आखिर में शून्य हाथ लगेगा।

Gokul Tapadiya

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विगत 10 वर्षों में अधिकतम घरों की अर्थिक स्थिति बिगड़ने के प्रमुख कारण...
1. घर मे प्रत्येक सदस्य के पास स्मार्ट फोन, एवं प्रति वर्ष नया लाना।
2. जन्म दिन, मैरिज एनीवर्सरी में दिखावटी खर्चे।
3. जीवन शैली में बदलाव के कारण खर्चों का बेतहाशा बढ़ना।
4. बच्चों के स्कूल, ट्यूशन आदि शिक्षण खर्चों में वृद्धि।
5. व्यक्तिगत खर्चे, ब्यूटी पार्लर, सेलून, ब्रांडेड कपड़ा, पार्टी, गेट टूगेदर आदि।
5. सगाई, शादी आदि में प्रतिष्ठा की भूख के कारण होने वाले खर्चे।
6. लोन पर दिया जाने वाला अतिरिक्त ब्याज।
7. मेडिकल खर्चों में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी।  कारण गलत खान पान। 
इस तरह के बिना जरूरत के खर्चो के अनुरूप कमाई बढ़ नही रही है।
परिणाम, तनाव तनाव और सिर्फ तनाव।
🙏बिना जरूरत के खर्चे कम करे। जरूरत रोटी, कपड़ा, मकान की थी,
 है, और हमेशा रहेंगी। इच्छाएं अनन्त है...!!!

अरफ़ान भोपाली

दो रोटी अपने परिवार के लिए कमाता हूँ इसलिए
अक्सर  घर से निकल कर , घर को लौट आता हूँ #घर #परिवार #रोटी #कपड़ा #मकान #पेट #शरीर #माँ #nojoto #nojotohindi #nojotowriters #nojotonews 

NOJOTO🔴 @nojoto

Amir Hamja

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ऐ ईद क्यों तुम आ जाती हो(कविता)

ऐ ईद ऐ ईद क्यों तुम हर साल आ जाती हो
तड़पाती हो रुलाती हो मायूस कर के जाती हो
             ना तन पर नया कपड़ा है
           बस कहने को सब अपना है
मां बहलाती है फुसलाती है
खुद रोती है हमें भी रुलाती है
            मां ने कहा था तीस रोज़े रखोगे
            तो नया कपड़ा खुदा से पाओगे
मां कल तो चाँद रात है
ना कपड़ा मिला ना अब्बू मेरे साथ हैं
शहीद हो गए थे आतंकियों से लड़ते लड़ते
थक गया हूँ सरकार का आश्वासन सुनते सुनते
लोग बस मोमबत्तियां जलाते हैं फोटो लगाते हैं
किस हालात में गुजर रही जिंदगी पूछने नहीं आते हैं
इस साल ईद के मौके पर मेरे अब्बू नहीं आएंगे
हर साल की तरह अम्मी के लिए साड़ी चूड़ी नहीं लाएंगे
इसलिए ऐ ईद क्यों तुम हर साल आ जाती हो
तड़पाती हो रुलाती हो मायूस कर जाती हो
        अमीर हमज़ा
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