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Jitendra Mishra
**मजबूर मजदूर** समझ नहीं आता कि सदियों से मैं ही क्यों मर रहा हूँ, मजदूर हूँ मजबूर हूँ क्या इसीलिए ही मर रहा हूँ। गरीबी को दोष दूँ या महामारी का नाम लगाऊँ, मरने को पटरी पे लेटूँ या ट्रक पे चढ़ जाऊँ। लोग कहते हैं की सत्ता का राजमार्ग हमसे ही बना है, तो फिर हमारे गाँव का मार्ग हमारे खून से ही क्यों सना है। अरे बच्चे भूखे हैं बेहाल हैं तड़पती है आत्मा मेरी, पैदल चल रहे हैं पैरों में छाले हैं और ये बेदर्द दुपहरी। सुना है टी वी पे सिर्फ हमारा ही चर्चा हो रहा है, हम मर रहें हैं लेकिन हमीं पे खर्चा हो रहा है। हो जाए बहस पूरी तो कुछ काम भी कर लेना, मजदूर की मजबूरी का कुछ ध्यान भी धर लेना। माना हमें अकल नहीं है गरीबों में होती भी कहाँ है, बस हमें वो चौखट दिखा दो हमारी उम्मीद जहाँ है। बस हमें वो चौखट दिखा दो हमारी उम्मीद जहाँ है। #JeetKiKalam #corona #lockdown #majdoor #poor #Home #Pain #Poetry #jeetkikalam
Jitendra Mishra
*मुखाग्नि तुझे ही देनी होगी* माँ मुझको नहीं है सोना, पापा कब तक आएंगे उन्होंने फ़ोन पे कहा था, वो टाफी बिस्कुट लाएंगे नई फ्राक मैं पहनूँगी , जब पापा घर पर आएंगे कंधे पे बैठ के शोर करुँगी, जब पापा घर पे आएंगे मैं पापा की उँगली पकड़ के,स्कूल दौड़ के जाऊंगी पापा ने जो गाना सिखाया, वो स्कूल में जोर से गाऊंगी मेरे पापा बड़े बहादुर , देश की सेवा करते हैं वो तो सच्चे फ़ौजी हैं , देश प्रेम पे मरते हैं बेटी की ये बातें सुनकर, माँ का कलेजा फट गया कैसे बताऊँ इसको,उसका पिता देशप्रेम की बलि चढ़ गया दुश्मन की एक गोली आकर , उनके सीने में धँस गई चूड़ियां सुहाग की टूट गईं, बेटी बिन बाप की हो गई उनके जिगर का टुकड़ा थी ये, बिट्टो बिट्टो कहते थे जब भी मिलने आते थे,तो आँसू अनवरत बहते थे सीने से लगाकर कहते थे, की इसकी शादी राजकुमार से होगी कोई कसर ना बाकी रहेगी, आखिर मैं हूँ देश का सच्चा फ़ौजी कहते थे की इसको मैं , हर क्षमता तक पढ़ाऊंगा ख़ून दे दूंगा सारा देश को, लेकिन इसको आगे बढ़ाऊंगा सो गए ये आज गहरी नींद में, हमको सदा जगाने को अबकी करवाचौथ पे कौन आएगा,मुझे पानी ग्लास पिलाने को हाय मस्तक सूना हो गया मेरा,लेकिन देश का मस्तक न झुकने दिया हमारी दुनियाँ काली हो गई , बुझ गया हर उम्मीद का दिया तिरंगे में लिपटे ये , चन्दन चिता पे लेटे हैं हर आँख रो रही बिना रुके,ये भारत माँ के बेटे है बेटी मेरी निहार रही , ये पापा यहाँ क्यों सो रहे लकड़ी चुभ जायेगी पीठ में , पापा से कहो घर चलें कैसे समझाऊं इस गुड़िया को, ये पुण्य चिता है पापा की ये बेचारी क्या जाने , ये तो जिगर की टुकड़ा है पापा की कैसे समझाऊं ये अंतिम क्षण हैं, आज माँग सूनी होगी अपने पिता की पुण्य चिता को, मुखाग्नि तुझे ही देनी होगी अपने पिता की पुण्य चिता को,मुखाग्नि तुझे ही देनी होगी।। जीत की कलम (जितेन्द्र मिश्रा) का देश के जाबांज़ सिपाहियों को शत शत नमन। #thepoetrystudio #jeetkikalam
Jitendra Mishra
माँ मुझको नहीं है सोना, पापा कब तक आएंगे उन्होंने फ़ोन पे कहा था, वो टाफी बिस्कुट लाएंगे नई फ्राक मैं पहनूँगी , जब पापा घर पर आएंगे कंधे पे बैठ के शोर करुँगी, जब पापा घर पे आएंगे मैं पापा की उँगली पकड़ के,स्कूल दौड़ के जाऊंगी पापा ने जो गाना सिखाया, वो स्कूल में जोर से गाऊंगी मेरे पापा बड़े बहादुर , देश की सेवा करते हैं वो तो सच्चे फ़ौजी हैं , देश प्रेम पे मरते हैं बेटी की ये बातें सुनकर, माँ का कलेजा फट गया कैसे बताऊँ इसको,उसका पिता देशप्रेम की बलि चढ़ गया दुश्मन की एक गोली आकर , उनके सीने में धँस गई चूड़ियां सुहाग की टूट गईं, बेटी बिन बाप की हो गई उनके जिगर का टुकड़ा थी ये, बिट्टो बिट्टो कहते थे जब भी मिलने आते थे,तो आँसू अनवरत बहते थे सीने से लगाकर कहते थे, की इसकी शादी राजकुमार से होगी कोई कसर ना बाकी रहेगी, आखिर मैं हूँ देश का सच्चा फ़ौजी कहते थे की इसको मैं , हर क्षमता तक पढ़ाऊंगा ख़ून दे दूंगा सारा देश को, लेकिन इसको आगे बढ़ाऊंगा सो गए ये आज गहरी नींद में, हमको सदा जगाने को अबकी करवाचौथ पे कौन आएगा,मुझे पानी ग्लास पिलाने को हाय मस्तक सूना हो गया मेरा,लेकिन देश का मस्तक न झुकने दिया हमारी दुनियाँ काली हो गई , बुझ गया हर उम्मीद का दिया तिरंगे में लिपटे ये , चन्दन चिता पे लेटे हैं हर आँख रो रही बिना रुके,ये भारत माँ के बेटे है बेटी मेरी निहार रही , ये पापा यहाँ क्यों सो रहे लकड़ी चुभ जायेगी पीठ में , पापा से कहो घर चलें कैसे समझाऊं इस गुड़िया को, ये पुण्य चिता है पापा की ये बेचारी क्या जाने , ये तो जिगर की टुकड़ा है पापा की कैसे समझाऊं ये अंतिम क्षण हैं, आज माँग सूनी होगी अपने पिता की पुण्य चिता को, मुखाग्नि तुझे ही देनी होगी अपने पिता की पुण्य चिता को,मुखाग्नि तुझे ही देनी होगी।। जीत की कलम का देश के जाबांज़ सिपाहियों को शत शत नमन। #thepoetrystudio #jeetkikalam
Jitendra Mishra
Trust me चाहतों में घिरी ज़िन्दगी चाहतों में कट रही, चाहतें मगर हैं बढ़ रही क्यों चाहतें ना कट रहीं। तलाश में सुकून के इंसा फिरे यहाँ वहाँ, ज़िन्दगी में ज़िन्दगी की, ज़िन्दगी ना मिल रही। हो उदास मैं एक दिन आईने में देखकर, पूँछ बैठा ख़ुद से ही, एक सवाल रूठकर। कहाँ मिलेगा सुकूँ और कहाँ ज़िन्दगी, आईने ने दिखाया मुझे ज़िन्दगी का आयना। बोल पड़ा मुस्कुरा के तुझमें ही है सुकूँ तुझमें ही है ज़िन्दगी तुझमें ही है सुकूँ तुझमें ही है ज़िन्दगी। #जीतकीकलम #zindagi #life #poetry #mirror #trust #JeetKiKalam
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