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अदनासा-
अर्पिता
जीवन मे आपसी सामन्जस्य बनाएं रखना बहुत जरूरी होता हैं। ©अर्पिता #सामंजस्य
Mukesh Meet
दुनिया को समझा ही लेंगे अपनी बातों से, पर तेरा सहमत होना भी बहुत जरूरी है। ©Mukesh Meet #सामंजस्य#ही समझदारी है#
Rakesh frnds4ever
कद्र और समय दोनों प्रतिव्रती अनुक्रियाँ हैं अगर किसी की कद्र करोगे तो वो कभी अपना समय नहीं देता है और अगर किसी को अपना समय दोगे तो वो तुम्हारी कभी कद्र नहीं करता है परन्तु कुछ हम जैसे भी लोग होते हैं जो कद्र और समय दोनों में सामंजस्य और तालमेल बनाए रखते हुए उसमे फिक्र और परवाह भी शामिल करते हुए लोगों को खुद से ज्यादा महत्व देते हैं,, ज्यादा अहमियत देते हैं पर फिर भी बदले में मतलबी दुनिया के मतलबपरस्त लोग अपनी चालाकियों, जूठ,फरेबों, बेइमानियों, धोखों से बाज नहीं आते ओर सोचते हैं कि कोई उनकी असलियत नहीं जानता,,,.... ©Rakesh frnds4ever #कद्र और #समय दोनों प्रतिव्रती अनुक्रियाँ हैं अगर किसी की कद्र करोगे तो वो कभी अपना समय नहीं देता है और अगर किसी को अपना समय दोगे तो वो तुम्हारी कभी कद्र नहीं करता है #परन्तु
अदनासा-
वैसे सोशियल मिडिया हो या कोई अन्य माध्यम हो, कविता हो या कोई लेख हो, हर जगह हमने जितना "माँ" के लिए लिखा है उतना हम अपने "बाप" के लिए नही लिखते, क्योंकि केवल भारत ही नहीं विश्व भर में कई जगह पुरुष ही प्रधान है, परंतु यदि पुरुष प्रधान है तो स्त्री का प्रधान होना भी उतना ही आवश्यक है, वास्तव में हमारे आसपास हर एक के विरुद्ध एक होता ही है, फ़िर वो वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो या फ़िर समाजिक दृष्टिकोण, वैसे ख़ासतौर पर मुझे नही लगता कि हम सभी को स्त्री या पुरुष में कोई भेद करना चाहिए, परंतु वास्तविक तौर पर स्वयं भगवान ने ही भेद किया है, मगर वर्तमान में, हम लोग जो स्त्री एवं पुरुष में भेद कर रहे है, वह भेद की पराकाष्ठा है, हम सभी संतुलन को बिगाड़ रहे है, समाज में जितनी ज़रूरत पुरुष की है उतनी ही ज़रूरत स्त्री की भी है, अब वह समय आ गया है कि हम सभी को, समाज में संतुलन एवं सामंजस्य बैठाने की नितांत आवश्यकता है, कहने का तात्पर्य बस इतना है कि, स्त्री-पुरुष, मां-बाप या बेटा-बेटी में किसी एक को भी इतना महान मत बना दो की, सामाजिक ताना-बाना बिगड़कर असंतुलित हो जाए। ©अदनासा- #हिंदी #संतुलन #सामंजस्य #समाज #स्त्रीपुरुष #बेटाबेटी #मांबाप #Facebook #Instagram #अदनासा
PRIYA SINHA
🤗🤝🤗"सामंजस्य"🤗🤝🤗 जानती हूँ स्थिति परिस्थिति के मध्य , अक्सर हीं सामंजस्य बिठाना चाहिए ; उचित अनुचित वक्त पर समझदारी से , मिलकर हीं रिश्तों को निभाना चाहिए ; पर आता नहीं काम समझदारी हर-वक्त , इसलिए नाराजगी, दोस्ती और प्यार को , खुलकर जरूर हीं अपनों से जताना चाहिए ! प्रिया सिन्हा 𝟏𝟒. जुलाई. 𝟐𝟎𝟏𝟗. (रविवार) ©PRIYA SINHA #सामंजस्य
Rihan khan
हम लोगों को खोने से डरते हैं। सोचते हैं कि हमारी वजह से उनका दिल न दुखे तो हम उनका मन रखने की कोशिश करते रहते हैं! हमारे संस्कार सिखाते हैं कि सामने वाले का सम्मान करो। ये हमारा दायित्व है कि उसे सुनो कि वो क्या कहना चाहता है, इसलिए हम उसको सुनते हैं जबकि हमारी सहमति ही नहीं होती उसकी किसी बात में। हमारी संवेदनशीलता कहती है कि सामने वाले को खुशी मिल रही है तो थोड़ा सहन कर लो यदि कुछ सुहा नहीं रहा तब भी और इस तरह हम दूसरों की खुशी में अपनी खुशी मिलने का कहकर खुद को तसल्ली देने लगते हैं। हम अपने आसपास तनाव नहीं चाहते इसलिए लोगों की बातों या उनके व्यवहार का प्रतिकार नहीं करते, परिस्थितियों से #सामंजस्य बिठाने का प्रयास करते रहते हैं। इस तरह हम माहौल को तो ठीक कर लेते हैं पर अपने मन में अशांति उत्पन्न कर लेते हैं। यह सही है कि ऐसा करते रहने से हम सबको प्रिय लगते हैं पर हमारा स्वयं का क्या! हम सबको पाते-पाते स्वयं को तो नहीं खो रहे हैं इसका ध्यान भी रखना बहुत आवश्यक है । वरना हम औरों को तो तो खुश रख लेंगे पर खुद कभी खुश नहीं रह पाएँगे। अतः अपने कुछ सिद्धांतों और जीवन के कुछ मूल्यों से कभी समझौता मत कीजिए! जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा ©Rihan khan #RRR पूजा उदेशी Harvinder Ahuja Anshu writer Nikita Garg अब्र The Imperfect
#RRR पूजा उदेशी Harvinder Ahuja Anshu writer Nikita Garg अब्र The Imperfect #Motivational #सामंजस्य
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अभिषेक ठाकुर
अतुकान्त कविता - सामंजस्य! कभी कभी न जाने क्या हो जाता है तुम्हे, बिन वजह के खड़ा कर देती हो बबाल। समझती ज्यों नहीं? ये घर है! अनसुनी करना तुम्हारी आदतों में सामिल होने लगा है अब। मान क्यों नहीं लेतीं? ये मायका नहीं है ये ससुराल है। बच्चे पर गुस्सा उतारना आंखे, भौंहें चढ़ाना रूठ कर गुमशुम बैठना ये सब क्या करती रहती हो? मां! वो मां है। वो कुछ भी कहदे तो सुनो,समझो न कि जवाब दो। पर नहीं तुम्हें तो कुछ समझना ही नहीं है। कितना अखरता है मुझे ये सब कभी सोंचती हो? ये जंगल नहीं है जहां एक को मारकर दूसरा जीने लगेगा। नहीं भाता मुझे तुमसे झगड़ना,डांटना शाम को थककर आने के बाद। जरा समझो! तुम और सब दोनों में पिस जाता हूं निरपराध केवल सामंजस्य लाने हेतु। ✍अभिषेक ठाकुर