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Anuradha Vishwakarma
प्रत्यक्ष लोकतंत्र या सीधा लोकतंत्र में सभी नागरिक सारे महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर मतदान करते हैं। इसे प्रत्यक्ष कहा जाता है क्योंकि सैद्धांतिक रूप से इसमें कोई प्रतिनिधि या मध्यस्थ नहीं होता। सभी प्रत्यक्ष लोकतंत्र छोटे समुदाय या नगर-राष्ट्रों में हैं. (स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र हैं. ) jhankiom vishwakarma #Nature प्रत्यक्ष लोकतंत्र या सीधा लोकतंत्र में सभी नागरिक सारे महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर मतदान करते हैं। इसे प्रत्यक्ष कहा जाता है क्यों
#Nature प्रत्यक्ष लोकतंत्र या सीधा लोकतंत्र में सभी नागरिक सारे महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर मतदान करते हैं। इसे प्रत्यक्ष कहा जाता है क्यों
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लोकतंत्र के दो प्रकार होते हैं :- 1) प्रत्यक्ष 2) अप्रत्यक्ष #alone लोकतंत्र के दो प्रकार होते हैं :- 1) प्रत्यक्ष 2) अप्रत्यक्ष
#alone लोकतंत्र के दो प्रकार होते हैं :- 1) प्रत्यक्ष 2) अप्रत्यक्ष
read moreविनोद "साँवरिया"
कौन दिलाये दण्ड स्वयं अब, अपने ही कारिन्दों को। खुद की खातिर कौन चुनेगा, उन फाँसी के फन्दों को। हमने चुनकर खुद भेजा कुछ, व्यभिचारी प्रतिनिधियों को। सोचो कैसे दण्ड मिलेगा, बहसी और दरिन्दों को। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विनोद साँवरिया लोकतंत्र के खलनायक
लोकतंत्र के खलनायक
read moreAnuradha Vishwakarma
अन्तर @अप्रत्यक्ष लोकतंत्र आमतौर पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र से अलग होता है। @प्रत्यक्ष लोकतंत्र में, लोग सीधे वोट देते हैं कि कानून पारित किया जाएगा या नहीं। @लेकिन अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में, लोग केवल उन प्रतिनिधियों का चयन करते हैं जो कानून बनायेंगे। jhankiom vishwakarma #weather अन्तर अप्रत्यक्ष लोकतंत्र आमतौर पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र से अलग होता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में, लोग सीधे वोट देते हैं कि कानून पारित
#weather अन्तर अप्रत्यक्ष लोकतंत्र आमतौर पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र से अलग होता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में, लोग सीधे वोट देते हैं कि कानून पारित
read moreRaunak (Srijan)
कभी कभी हम सरलता से कट रही ज़िंदगी में अनजाने ही कुछ ऐसी घटनाओं के गवाह बन जाते हैं जो हमारी आत्मा पर एक गहरी छाप छोड़ जाती हैं। कुछ दिन पहले अपनी बहन के घर से लौट रहा था। कुछ सोचते-सोचते ट्रेन पर चढ़ा और एक कोने में खड़ा हो गया।इतने में नज़र एक छह-सात साल की बच्ची पर पड़ी। फटे पुराने कपड़े, पैर बिना चप्पल के और बाल बिखरे हुए मगर होंठों पर एक मुस्कुराहट थी। तभी कानों में ढोलक की आवाज़ पड़ी। देखा तो एक तीस-चालीस साल का आदमी बैठा ढोलक बजा रहा है। ढोलक की तर्ज पर वह बच्ची गुलाटियां मारने लगी और गीत गाने लगी। मेरे मन को एक धक्का-सा लगा। मैंने पहले भी ऐसे दृश्य देखे थे पर कभी उनपर चिंतन नहीं किया। खुद को कोसने की पूरी तैयारी कर चुका था कि तब तक ढोलक की ताल तालियों के शोर में बदल गई। अपने मन को तसल्ली तो दे दी कि मैं एकमात्र बुरा इंसान नहीं हूं, मगर आत्मा पर पड़ी यह छाप जीवन भर रहेगी। प्रत्यक्ष
प्रत्यक्ष #अनुभव
read moreनेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो, जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो। हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त, संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।। मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो, जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो। नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां, अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।। मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी, पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी। नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण, चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब गीत और कजरी।। #लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र @लोकतंत्र
#लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र @लोकतंत्र
read moreनेहा उदय भान गुप्ता
ऐ मेरे सत्ता के शासक मेरे रखवाले, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो, जनता मांग रही है अब अपना हक, तुम ख़ामोश यहां पर क्यों हो। हे न्यायमूर्ति, हे न्याय प्रिय, आज लोकतंत्र यहां पर हुआ विलुप्त, संकट में है सबके प्राण यहां, तुम अब तक ख़ामोश यहां पर क्यों हो।। मंदिर मस्ज़िद का खेल खेलकर, तुम आपस में लोगों को बांट रहे हो, जाति वाद, धर्म का नारा देकर, लोगों को तुम आपस में छांट रहे हो। नव चेतना,नव जागृति नही, और ना ही हो रहा है नव निर्माण यहां, अपनी विषैली, कटु, विषाक्त शब्दों से हर उम्मीदों को तुम कांट रहे हो।। मूक बने है यहां पर सब दर्शक, बन गई है ये तो अन्धों की नगरी, पोथी में दबकर रह गया संविधान, चल रहे सब अपनी अपनी डगरी। नही है कोई महफूज यहां पर, अपने ही अपनों कर करते चीरहरण, चीत्कार की है बस आवाज़ यहां, विलुप्त हुआ अब गीत और कजरी।। #लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र @लोकतंत्र
#लोकतंत्र #लोकतंत्रभारत #लोकतंत्र_ख़तरे_में_है #विलुप्त होता लोकतंत्र @लोकतंत्र
read moreLata Sharma सखी
मुज्जसिम हूँ मैं, ये बात जान ले तू मेरे सनम, इश्क़ में अपनों से ही पर्दा नहीं किया करते। ©सखी #प्रत्यक्ष #इश्क़
Er.Mahesh
दिल में अति पीड़ा है , जता नही सकते आंखों के सामने लोकतंत्र मिट रहा है इसे बचा नही सकते इतिहास में सुना था गुलामी सही थी लोगों ने अब गुलामी के दर्द को दिल में छुपा नहीं सकते लोग शहीदों को सम्मान देते है बहुत सारा उनके त्याग का हर जगह करते हैं जय जय कारा लेकिन इस गुलामी से बचाने के लिए कोई खुद को आगे बढ़ा नही सकते उत्पीड़न से भरी गुलामी के इस दर्द को मिटा नही सकते ©Er.Mahesh #लोकतंत्र