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Bajrangautam
अपने attitude को, अपने जेब में रखो और चलते बनो..... "हमे attitude दिखाने वालों, सुनो जरा..... अपने शरीर के सारे छेद खोल कर। जीतना attitude तुम हमे दिखाते हो ना उससे कई ज्यादा attitude
अपने attitude को, अपने जेब में रखो और चलते बनो..... "हमे attitude दिखाने वालों, सुनो जरा..... अपने शरीर के सारे छेद खोल कर। जीतना attitude तुम हमे दिखाते हो ना उससे कई ज्यादा attitude #Attitude #nojotophoto #विचार #चपल #धुल #bajrangbhagat #bajrangautam #aapkejazbaat #चलते_बनो
read morePoet Shivam Singh Sisodiya
मैं अटल हूँ. बिहंगों सा चहकता मैं, चाँद सा औ चमकता मैं | विद्युत लड़ी की माल सा औ दामिनी सा दमकता मैं | मैं चपल हूँ - मैं चपल हूँ | मैं अटल हूँ || शिवम् सिंह सिसौदिया प्रथम पुण्यतिथि पर हार्दिक श्रद्धांजलि
प्रथम पुण्यतिथि पर हार्दिक श्रद्धांजलि
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
त्रिशंकु।। नियत और नियति के महासमर में, बन त्रिशंकु डोल रहा। निजकर्मों की हर एक आहट पर, भविष्य द्वार हूँ खोल रहा। जब उठना था बैठा रहा, जब चलना था ठहर गया। दम्भ काल्पनिक पाले था, सच देखा तो सिहर गया। कब सपनों का साथ रहा, वृत्ताकार बस चलना था। तिनके चुन चुन जो बुने थे, ठेस लगी और बिखर गया। कोई जुगत नहीं संयोग नहीं, रहा अनुकूल ये योग नहीं। चिंगारी बन जलता दर्द रहा, वैद्य कहे है कोई रोग नहीं। आंसू भी छलक अब सूखे हैं, बिन पानी दरिया में डूबे हैं। आकंठ रहा अहसास मुझे, भँवर में तैर रहे किस बूते हैं। चपल हुआ अब चपल भी नहीं, सफल तो रहा है सफल भी नहीं। आस के धागे बस रहे उलझते, भविष्य नहीं कोई कल भी नहीं। कब सार थी गर्भित इन शब्दों में, बस बजता ढोल रहा। नियत और नियति के महासमर में, बन त्रिशंकु डोल रहा। एक आस पुंज की ज्योति लिए, तमद्वार उलाहना चलती रही। दिन के उजियारे तपन बड़ी थी, जीवन मे रात उतरती रही। सूरज का उगना भी मेरे, राहों को रौशन कब कर पाया। वृक्ष लगाए ताड़ के बैठा, कैसे मिले फिर कोई छाया। बिन आयाम ही मैं बहुआयामी था, तज सारे कर्म बना फलकामी था। ना बुद्ध चन्द्रमा मंगल सूर्य, फ़नकाढे शनि ही ग्रहों का स्वामी था। आस्तिक बनूँ या बनूँ नास्तिक, दे दस्तक खुद को बोल रहा। नियत और नियति के महासमर में, बन त्रिशंकु डोल रहा। ©रजनीश "स्वछंद" त्रिशंकु।। नियत और नियति के महासमर में, बन त्रिशंकु डोल रहा। निजकर्मों की हर एक आहट पर, भविष्य द्वार हूँ खोल रहा। जब उठना था बैठा रहा,
Amrit Chaudhary
हमारे घर के पास ही एक जूते चपल का दुकान है तो जब मेरे चाचा की लड़की हुई थी तो दादी को उसके लिए नए कपड़े लेने थे तो परोश की एक आंटी थी उन्होंने कहा कि अभी नया नया दुकान खुला हैं जूते चपल का और उसमें छोटे बच्चोकेकपड़ेभी मिलते हैं तो आप व्हा से लेआओ तो दादी गई व्हा और दुकान दार से कहा आप छोटे बचचों के कपड़े भी रखते हो उसने कहा हा दादी ने कहा दिखा दो उसने दिखाया पर अच्छे नहीं थे पर दादी को लेनातो किसी भी तरह उन्होंने तीन पसंद करा और कहा बताओ कितना होगया इन सब का उसने कहा कुल आपके 750 रूपए होगए फिर दादी ने कहा ठीक ठीक लगा लो इक तो मुझे पसंद नहीं पर ज्यादा दूर जा नहीं शक्ति इसलिए ले रही हूं उस दुकान दारनेकहा इससेकम नहीं हो सकता दादी और दुकान दार में थोरी बेहश हुई फिर दादी ने कहा अछ ठीक है पैक करदो और फिर समान लेके 1000 रुपए उसे देके चली गई और दुकान दार ने भी नहीं दिया पैसा कुछ देर बाद दुकान दार को ऎहसास हुआ तो वो उनको खोजने लगा पर वो नहीं मिली फिर कुछ देर बाद जब वो जा रही थी उस दुकान के सामने से तो दुकान दार ने देख लिया उसने आवाज लगाईं दादी ईधर आओ आई तो दुकान दार ने उनको कहाआपने मुझे 250 रुपए ज्यादा दे दिया था फिर उनको याद आया उन्होंने कहा , बेटा भगवान तुम्हारा भला करे कोई और ऎसे बुलाके पैसे नहीं देता पर आपने बुलेक दिया है भगवान करे आपका दुकान बहुत चले भगवान आको समृद्धि दे 😊 बेटा भगवान तुम्हारा भला करे #nojoto #inspiration #story
बेटा भगवान तुम्हारा भला करे #Nojoto #Inspiration #story
read moreShilpi Singh
चपल,चंचल सी नैनों में, कहाँ तुझको छुपालूं मै। न बातों ख़बर मुझमें, न जज़्बातों का क़दर मुझमें। न देखी मै अभी दुनियां, कैसे दुनियां बनालूँ मै। अभी नदियों की पानी हूँ, दुबकी हुई कहानी हूँ। अभी ख़ुद से ही रूठी हूँ , कैसे तुझको मनालूँ मै। मुलाकातों का न मंज़र हैं, ख़्यालातों का न कोई डर हैं। अभी सहमी सी साँसे हैं, कैसे धड़कन बनालूँ मै।। चपल,चंचल सी नैनों में, कहाँ तुझको छुपालूं मै।। #स्वरचित....#शिल्पी सिंह❤ #विधा....#कविता चपल,चंचल सी नैनों में, कहाँ तुझको छुपालूं मै। न बातों ख़बर मुझमें, न जज़्बातों का क़दर मुझमें। न देखी मै अभी दुनियां, कैसे दुनियां बनालूँ मै।
Anil Siwach
।।श्री हरिः।। 37 - कनूँ कहाँ है? अचानक भद्र चौक्के गया - 'कनूँ कहाँ है?' यह कन्हाई दो क्षण न दीखे तो गोपकुमारों के प्राण छटपटाने लगते हैं। कृष्ण थोडी दूर नहीं चला जाय तो सब दौड़ते हैं होड़ लगाकर कि कौन पहिले नन्दलाल को स्पर्श करेगा। किंन्तु इस समय भद्र अपनी - अपने ह्रदय की व्याकुलता नहीं सोचता। भद्र चिन्तित्त हो उठा है कृष्ण के लियेय़ कन्हाई बहुत चपल है। वृक्षपर चढेगा, तो पतली शाखा पर भी चढने में¸हिचकता नहीं। दौड़ेगा तो नीचे देखेगा ही नहीं कि भूमि पर कुश, कण्टक, गड्ढे क्या हैं। जल में उतरेगा त
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 19 - चपल कन्हाई इतना चपल है कि कुछ मत पूछो। यह कब, क्या कर बैठेगा, इसका कुछ ठिकाना नहीं है। हिचकना, डरना तो इसे जैसे आता ही नहीं है। जब जो जी में आया, करके ही रहेगा। घर में मैया और रोहिणी माँ इसे सम्हालती हैं। गौष्ठ में चला जाय तो बाबा साथ लगे रहते हैं; किन्तु वन में आने पर तो यह स्वच्छन्द हो जाता है। श्याम दाऊ दादा का संकोच न करता हो ऐसी बात नहीं है। संकोच तो यह अपने से बड़ी आयु के सखा विशाल, वरूथप, ऋषभ, अर्जुन आदि का ही नहीं, समवयस्क भद्र तक का करता है; किन्तु बालक बडे-बूढे
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 12 - नृत्यरत ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है। हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और कुण्डल कपोलों पर ताल दें रहें हैं। कण्ठ में पड़ी मुक्तामाल, घुटनों से नीचे तक लटकती वनमाला के साथ लहरा रही है। फहरा रहा है पीतपट। वक्ष पर कण्ठ के कौस्तुभ की किरणें श्रीवत्स को चमत्कृत करती छहरा-छहरा उठती है। #Books
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|| श्री हरि: || 6 - न्यायशास्त्री 'अरे, तूने फिर ये कपि एकत्र कर लिये?' माँ रोहिणी जानती हैं कि इस नीलमणिके संकेत करते ही कपि ऊपर से प्रांगण में उतर आते हैं। उन्हें डर लगता है, कपि चपल होतें हैं और यह कृष्णचन्द्र बहुत सुकुमार है। यह भी कम चपल नहीं है। चाहे जब कपियों के बच्चों को उठाने लगता है। उस दिन मोटे भारी कपि के कन्धे पर ही चढ़ने लगा था। कपि चाहे जितना इसे माने, अन्नत: पशु ही हैं। वे इसे गिरा दे सकते हैं। माता बार-बार मना करती है कि - 'कपियों को प्रांगण में मत बुलाया कर! मैं इनके लिए भवन #Books
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|| श्री हरि: || 51 - वन की ओर 'राम! अपने छोटे भाई को साथ ही रखना बेटा! इसे धूप में मत घूमने देना। तुम लोग यमुना में मत उतरना। देखो, पेड़ पर कोई न चढ़े भला और परस्पर झगड़ना भी मत। कन्हाई की संभाल रखना लाल।' मैया को पता नहीं कितनी सूचनाएं देनी हैं। उसका नीलसुंदर वन की ओर जा रहा है। इसे किसी प्रकार रोका नहीं जा सकता। धक-धक कर रहा है मैया का हृदय। श्यामसुंदर को शीघ्रता है और दाऊ तो प्रस्तुत भी हो गया। सखाओं में कुछ भीतर आ गये हैं और कुछ द्वार पर से पुकार रहे हैं। अब मैया की सूचनाएं कहाँ सुनते है #Books
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