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Meenakshi
एक स्त्री अपनी कलाई से घिसा हुआ आस्था का धागा सालों तक नहीं उतारती ... (जो लाल रंग से अब बेरंग हो चला है ) क्योंकि उसका प्रेम इबादत है ! एक लड़का भगवान की तस्वीर की जगह अपनी प्रियतमा का रूमाल बटुए में दबाए रखता है, क्योंकि प्रेयसी की याद का वह टुकड़ा ही है जो उसके पास है ..! एक लड़की गले में चांद का लॉकेट पहने रखती है .. और कहती है "यह मेरा मंगलसूत्र है ", क्योंकि चांद ही उसका मेहबूब है ..! प्रेम ऐसा ही होता है ... आग की दरियाओं से बेखौफ़ टकरा जाने वाले प्रेमी नाज़ुक रेशम के धागों में, स्वेच्छा से , ताउम्र बंधे रहते हैं .. मीनाक्षी ©Meenakshi #srijanaatma #सृजनात्मा
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एक-एक बूंद कर ख़ाली हो रही हैं आंखें .. एक-एक बूंद कर भरते जाते हैं दिल ! भरे हुए दिल चाहते हैं ख़ाली आंखों में सच होता एक सपना.. ख़ाली आंखें चाहती हैं सपने देखने वाला इक दिल ! मीनाक्षी ©Meenakshi #srijanaatma #सृजनात्मा
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गुनगुने , हल्के ख़ुशी के पलों का रंग फ़ीका होता है । वे रंग नहीं पाते अंतस की भारी दीवारों को । पीड़ाओं के पल गहरे रंग लिये , तीक्ष्ण ताप के होते हैं । दो लोग बंधे हुए किसी पीड़ा से , एक साथ दुखाग्नि में पिघलते हैं और बची नहीं रहती उनकी मेढ़। वे दो ढहे हुए मकानों से हो जाते हैं , जिनकी ईंटें एक दूसरे की परिधि में गिरी मिलती हैं- पहचान करना असंभव होता है कि कौन सी ईंट किस मकान की थी । सुखों की डोर रेशम से बनी होती है , कब हाथ से फिसल जाये आभास नहीं होता ... वे दुख ही हैं जो जानते हैं कठोरता से बाँधे रखना। प्रेम भी कोमल कहाँ !! प्रेम की तासीर कठोर है । वे दुख ही हैं जिनमें प्रेम साँसें लेता है । मीनाक्षी ©Meenakshi #सृजनात्मा #srijanaatma
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कवि से न पूछो कभी उसकी कविता का अर्थ। वह नहीं बता पायेगा किन भावों के जोड़ से बने कौन से शब्द ! कौनसी पीड़ा ने ली कैसी शक्ल? किस पंक्ति में कौन सी शाम दबी हो ? कौनसी चीख़ कब निकली हो ? याद नहीं कवि को अब । एक माँ से पूछोगे कि गर्भ में उसने जीवन कैसे बनाया, तो क्या बतला पायेगी वह तुम्हें ? माँ ने बस ख़ून दिया अपना। जान देकर निकाली जान ख़ुद में से। न जाने कितनी बार मरा कवि भी तो , कविता को जन्म देते देते... मत पूछो उससे उसकी कविता की रासायनिक संरचना, नहीं बता पायेगा वह .... उसने बस ख़ून दिया है जान देकर निकाली जान है ख़ुद में से। ©Meenakshi #सृजनात्मा #srijanaatma
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टुकड़ों में सरकता है दिन छाती पर लादे कोलाहल जिस्म रेंगता है, खड़ी दुपहरी सन्नाटा खर्राटे भरता है- कच्ची नींद रो देती है ..। -------------------------------- अंधेरा होता है जब, बिस्तर का रुख़ करती हूँ - पड़ा मिलता है ढेर चादर पर भुरभुराये तन का , पहले से ही .. बिस्तर तक पहुँचने में देर हो चुकी होती है ! मैं घट चुकी होती हूँ, बीते पहर ही । पूरी होने से पहले ही रात खट चुकी होती हूँ । ख़ुद तक पहुँचती हूँ जब तलक, बहुत देर हो चुकी होती है । मीनाक्षी ©Meenakshi #सृजनात्मा #srijanaatma
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लेखिका: अंकिता आनंद #podcast #firstpodcast #podcasts #srijanaatma #सृजनात्मा साहित्य की ओर एक पहल 🌻
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मैं वह वृक्ष हूँ जिसकी डाल पर से तुम अपनी पहली उड़ान भरोगे। आकाश भर में विचरते , समस्त जगत घूमोगे .. तितलियों संग खेलोगे , फूलों का स्वाद चखोगे .. फिर एक दिन तुम्हारे पंख थक कर चूर हो जायेंगे और तुम चाहोगे थम जाना.. वहाँ जहाँ केवल सुकून हो ... उस दिन घोंसला बनाने को ... तुम मुड़ोगे उसी रास्ते जो तुम्हें मुझ तक वापस लायेगा । ©Meenakshi #सृजनात्मा #srijanaatma #प्रेम #आत्मा #विश्वास
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