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Akshat paras jain

school love #poem #अक्षत

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आज भी वही मेरा पहला प्यार है 
       
           यह बात जरूर है छोटी क्लास की
                     मगर बात नहीं है छोटे ख्वाब की
बात है यह पहले दिन की 
               जब टेबल से में टकराया था 
              लेकिन उसकी आंखो के नूर को देख,
                में चिल्ला भी ना पाया था ।
हां छोटी सी क्लास में ही 
               वह बहुत नखरे करती थी,
लेकिन यही बात तो मुझे 
                      उसकी सबसे अच्छी लगती थी।
      और अब तो मेरे दोस्तों को भी
               वही उनकी भाभी लगती थी
तभी तो लंच टाइम में 
                       मेरे लिए पूरी क्लास खाली रहती थी।
    हां वैसे तो कई बार आंखों से 
               अपने दिल की बात कर देता था,
 मगर पता नहीं क्यों उन्हें 
                        लफ्जों में बयां क्यों नहीं कर देता था।
   जी हां आज भी मैं उसे ही 
             याद करता रहता हूं,
      तभी तो अरिजीत के गाने 
              सुनता रहता हूं।
      मंजिल तो नहीं मगर 
            सफर की यादें जरूर साथ है,
                         तभी तो 
      'आज भी वही मेरा पहला प्यार है'

                 #अक्षत पारस जैन# school love

Akshat paras jain

hostel life #अक्षत

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जी हां रोया उस रात बहुत था मैं

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
 जब घर छोड़कर हॉस्टल में आया था मैं ।

जो सपन देखे थे मेने 
              एक झटके मे  शीण हो गए,
माँ की आंखों में आँसू देख
             दिल के हर कोने नम हो गया ।
पापा की आवाज में पहली बार 
              मेने वह नमी पाई थी, 
जब मुड़ कर देखा मैंने तो
            'शायद' उनकी आंख भी भर आई थी ।1।
    
जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं ।

जब कदम रखा कमरे में मैंने 
              तो एक अजीब सी घबराहट आई थी ,
शायद मम्मी पापा के जाने की 
             मुझे ये आहट आई थी ।
जब मुड़कर देखा मैंने 
             तो ना कोई आगे पीछे था,
बस एक मायूस चेहरा और 
            सामने 'दीवारों' का पहरा था।2।

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं।

भरे गले से मैंने अपने आप को 
            ठीक बताया था,
उस शाम पहली बार 
           जब फोन मां का आया था।
फोन के कटते  ही में
           जोर-जोर से मैं रोने लगा ,
और कुछ समय बाद गर्मी में 
          'कंबल' ओढ़ के फिर रोने लगा ।3।

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं ।।
             
            ##अक्षत 'पारस' जैन## hostel life

pandeysatyam999

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती। तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी। दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥ सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, दुष्टों को तू ही ललकारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥ #nojotophoto

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 अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।

तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥
सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, दुष्टों को तू ही ललकारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥

Way With Words

पार्ट 9 रमा बहन और मीना ने अक्षत को बहुत समझाया पर वह अपनी बात पर अडिग रहा। “तुम एक तलाकशुदा लड़की से शादी नहीं कर सकते। यह मेरा आखिरी फैसला है।“ मनहरलालजी ने कह दिया। “में सिर्फ तनूजा से ही शादी करूँगा।" “तुम्हारे पास सिर्फ दो ही विकल्प है। या तो नेहा से शादी कर लो या फिर यह घर छोड़ कर चले जाओ।" ***

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एक दीवाना था।
(पार्ट 9) पार्ट 9
रमा बहन और मीना ने अक्षत को बहुत समझाया पर वह अपनी बात पर अडिग रहा। 
“तुम एक तलाकशुदा लड़की से शादी नहीं कर सकते। यह मेरा आखिरी फैसला है।“ मनहरलालजी ने कह दिया।
“में सिर्फ तनूजा से ही शादी करूँगा।"
“तुम्हारे पास सिर्फ दो ही विकल्प है। या तो नेहा से शादी कर लो या फिर यह घर छोड़ कर चले जाओ।"

***

Way With Words

उस रात अक्षत ने जल्दी से खाना खा लिया और अपने कमरे में आ गया। नींद तो आने वाली नहीं थी। बस रात-भर सोचता रहा। कभी लगता कि अपने दिल की सुने तो कभी लगता कि नेहा से शादी कर लेना ही बेहतर होगा। पर क्या तनूजा को भुला कर वह नेहा को खुश रख पायेगा? क्या वह खुद खुश रह पायेगा? फिर से सवाल बहुत सारे थे पर जवाब एक भी नहीं। सुबह उठ कर जब नाश्ता करने के लिये गया तब… “अक्षत, आज से में भी दुकान आऊँगा।“ मनहरलालजी ने कहा। “जी पापा।“ “यह अच्छा हुआ।“ रमाबहन बोली। “नेहा के लिये कपड़े और आभूषण खरीदने है। तो में चा

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एक दीवाना था।
(पार्ट 8) उस रात अक्षत ने जल्दी से खाना खा लिया और अपने कमरे में आ गया। नींद तो आने वाली नहीं थी। बस रात-भर सोचता रहा। कभी लगता कि अपने दिल की सुने तो कभी लगता कि नेहा से शादी कर लेना ही बेहतर होगा। पर क्या तनूजा को भुला कर वह नेहा को खुश रख पायेगा? क्या वह खुद खुश रह पायेगा? फिर से सवाल बहुत सारे थे पर जवाब एक भी नहीं।
सुबह उठ कर जब नाश्ता करने के लिये गया तब…
“अक्षत, आज से में भी दुकान आऊँगा।“ मनहरलालजी ने कहा।
“जी पापा।“
“यह अच्छा हुआ।“ रमाबहन बोली।
“नेहा के लिये कपड़े और आभूषण खरीदने है। तो में चा

Way With Words

तनूजा तो दुकान से चली गई पर अक्षत को सोच में डाल गई। नेहा से रिश्ता तय हो गया था। घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। और अब पता चला कि तनूजा की शादी टूट चुकी थी। एक बार ख्याल तो आ गया कि वह नेहा से शादी करने से मना कर दें। पर फिर माँ-पापा का ख्याल आया। उन्हें वजह भी तो बतानी होगी। सोचा कि तनूजा के बारे में बता दें। पर अगर उन्होंने मना कर दिया यह कह कर कि वह तलाकशुदा है तो!? फिर ख्याल आया कि यह सब तो बाद की बातें है। पहले तो उसे तनूजा को अपने दिल कि बात बतानी होगी। क्या पता तनूजा क्या जवाब देगी!

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एक दीवाना था।
(पार्ट 7) तनूजा तो दुकान से चली गई पर अक्षत को सोच में डाल गई।
नेहा से रिश्ता तय हो गया था। घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। और अब पता चला कि तनूजा की शादी टूट चुकी थी। एक बार ख्याल तो आ गया कि वह नेहा से शादी करने से मना कर दें। पर फिर माँ-पापा का ख्याल आया। उन्हें वजह भी तो बतानी होगी। सोचा कि तनूजा के बारे में बता दें। पर अगर उन्होंने मना कर दिया यह कह कर कि वह तलाकशुदा है तो!? फिर ख्याल आया कि यह सब तो बाद की बातें है। पहले तो उसे तनूजा को अपने दिल कि बात बतानी होगी। क्या पता तनूजा क्या जवाब देगी!

Way With Words

एक वक़्त था कि अपनी शादी के बारे में सोच कर अक्षत खुश हो जाता था। उसके मन ने कहीं ख़्वाब सजाये थे तनूजा को लेकर। पर ख़्वाब थे और ख़्वाब ही रह गये थे। जब मनहरलालजी ने लड़की देखने जाने की बात करी तो उसने हाँ कह दिया। प्यार तो उसने कर लिया था। अब तो बस समझौता ही करना था। क्या फर्क पड़ता लड़की चाहे कोई भी हो? अब तो सिर्फ अपने माँ-बाप की ख़ुशी के लिये ही शादी करनी थी। वह दिन भी आ गया जब अक्षत लड़की को पहली बार मिलने गया। उसका नाम नेहा था। वह दिखने में ठीक-ठाक थी और खास बात यह थी की रमा बहन को नेहा पसँद आ ग

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एक दीवाना था।
(पार्ट 6) एक वक़्त था कि अपनी शादी के बारे में सोच कर अक्षत खुश हो जाता था। उसके मन ने कहीं ख़्वाब सजाये थे तनूजा को लेकर। पर ख़्वाब थे और ख़्वाब ही रह गये थे। 
जब मनहरलालजी ने लड़की देखने जाने की बात करी तो उसने हाँ कह दिया। प्यार तो उसने कर लिया था। अब तो बस समझौता ही करना था। क्या फर्क पड़ता लड़की चाहे कोई भी हो? अब तो सिर्फ अपने माँ-बाप की ख़ुशी के लिये ही शादी करनी थी।
वह दिन भी आ गया जब अक्षत लड़की को पहली बार मिलने गया। उसका नाम नेहा था। वह दिखने में ठीक-ठाक थी और खास बात यह थी की रमा बहन को नेहा पसँद आ ग

Way With Words

मनहरलालजी को चौट लगने के बाद दुकान की सारी ज़िम्मेदारी अब अक्षत पर आ गई थी। वह भी मन लगाकर दुकान के काम में जुट गया था। काम जैसे उसके टूटे हुये दिल के लिये दवा का काम कर रहा था। एक दिन वह दुकान में बैठा था कि माँ का फ़ोन आ गया। “बेटा! अभी के अभी घर आ जाओ।“ सुन कर अक्षत घबरा गया। “माँ, सब कुछ ठीक तो है?” “हाँ, सब ठीक है। मीना को देखने लड़केवाले आने वाले है। तो तू जल्दी से आजा। और सुन थोड़ी मिठाई भी लेते आना।“ अक्षत जब घर पहुँचा तो लड़केवाले आ गये थे। सब बातें कर रहे थे। “यह हमारा बेटा अक्षत है

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एक दीवाना था।
(पार्ट 5) मनहरलालजी को चौट लगने के बाद दुकान की सारी ज़िम्मेदारी अब अक्षत पर आ गई थी। वह भी मन लगाकर दुकान के काम में जुट गया था। काम जैसे उसके टूटे हुये दिल के लिये दवा का काम कर रहा था।
एक दिन वह दुकान में बैठा था कि माँ का फ़ोन आ गया।
“बेटा! अभी के अभी घर आ जाओ।“
सुन कर अक्षत घबरा गया।
“माँ, सब कुछ ठीक तो है?”
“हाँ, सब ठीक है। मीना को देखने लड़केवाले आने वाले है। तो तू जल्दी से आजा। और सुन थोड़ी मिठाई भी लेते आना।“
अक्षत जब घर पहुँचा तो लड़केवाले आ गये थे। सब बातें कर रहे थे। 
“यह हमारा बेटा अक्षत है

Way With Words

आप आगे बढ़ो या ना बढ़ो, ज़िन्दगी है कि आगे बढ़ती रहती है। हमारे अक्षत की ज़िन्दगी भी चल रही थी। धीरे धीरे वह सदमे से उभर रहा था, दोस्तों के साथ भी फिर से घुलने-मिलने लगा था। एक मुहब्बत की बातें उसका मूड खराब कर देती थी। उसने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाये पर फिर कभी वह प्यार नहीं करेगा। और करता भी क्यों!? जब भी तनूजा का ख्याल आ जाता, दिल में एक टीस उठती। एक दिन सब यार-दोस्त इक्ट्ठे बैठे हुये थे। हँसी-मज़ाक का दौर चल रहा था। अक्षत भी हल्का सा कभी कभी मुस्कुरा देता था। किसी ने पूछ ही लिया अक्षत को… “आज

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एक दीवाना था।
(पार्ट 4) आप आगे बढ़ो या ना बढ़ो, ज़िन्दगी है कि आगे बढ़ती रहती है। हमारे अक्षत की ज़िन्दगी भी चल रही थी। धीरे धीरे वह सदमे से उभर रहा था, दोस्तों के साथ भी फिर से घुलने-मिलने लगा था। एक मुहब्बत की बातें उसका मूड खराब कर देती थी। उसने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाये पर फिर कभी वह प्यार नहीं करेगा। और करता भी क्यों!? जब भी तनूजा का ख्याल आ जाता, दिल में एक टीस उठती।
एक दिन सब यार-दोस्त इक्ट्ठे बैठे हुये थे। हँसी-मज़ाक का दौर चल रहा था। अक्षत भी हल्का सा कभी कभी मुस्कुरा देता था। किसी ने पूछ ही लिया अक्षत को…
“आज

Way With Words

“बड़े चुप चुप से हो, बेटा!?” रमा बहन ने पूछा। “ठीक से खाना भी नहीं खाया तुमने!” अक्षत क्या बोलता? दिल पर चोट लगी थी पर किसी को बता नहीं सकता था। बस इतना कह दिया की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी। घर पहुँचते ही वह अपने कमरे में चला गया। अकेले में आँखों से आँसू निकल आये। उसने बत्ती बुज़ा दी। नींद तो आनेवाली नहीं थी बस अँधेरे में तनूजा के बारे में सोचता रहा। “भैया! उठ भी जाओ अब। काफी देर हो चुकी है। कितना सोओगे?” मीना ने दरवाज़ा खटखटाया। अक्षत ने दरवाज़ा नहीं खोला। मन नहीं था किसी से बात करने का।

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एक दीवाना था।
(पार्ट 3) “बड़े चुप चुप से हो, बेटा!?” रमा बहन ने पूछा।
“ठीक से खाना भी नहीं खाया तुमने!”
अक्षत क्या बोलता? दिल पर चोट लगी थी पर किसी को बता नहीं सकता था। बस इतना कह दिया की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी।
घर पहुँचते ही वह अपने कमरे में चला गया। अकेले में आँखों से आँसू निकल आये। उसने बत्ती बुज़ा दी। नींद तो आनेवाली नहीं थी बस अँधेरे में तनूजा के बारे में सोचता रहा।
“भैया! उठ भी जाओ अब। काफी देर हो चुकी है। कितना सोओगे?” मीना ने दरवाज़ा खटखटाया।
अक्षत ने दरवाज़ा नहीं खोला। मन नहीं था किसी से बात करने का।
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