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Divyanshu Pathak
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ! परमात्मेति चाप्युक्तो देहेस्मिनपुरुषः परः !! : देह में स्थित यह "आत्मा" "परमात्मा" ही है जो उपद्रष्टा बनकर हमारे हर कर्म क्रिया प्रतिक्रिया का साक्षी है यही हमें यथार्थ सम्मति का बोध कराकर कुमार्ग पे जाने से रोकने का प्रथम प्रयास करता है ! भा.गी.अ/श्लोक--- 13/22 #शुभ संध्या जी 🌼💠☕☕🌹🌸🕉🌱🌲🌺🌻🍁🌴🌸🌹☕🙏💠 हे प्रभु हमारी जीवन ऊर्जा सृष्टि निर्माण के सौंदर्य में मितव्यता से व्यय हो । मार्ग मुझको तू दिखाये "मैं" तेरा अनुरागी बन कर निर्वाण पथ में लय हो । #पंछी #पाठक #हरे कृष्ण #श्रीमद्भगवद्गीता
#शुभ संध्या जी 🌼💠☕☕🌹🌸🕉🌱🌲🌺🌻🍁🌴🌸🌹☕🙏💠 हे प्रभु हमारी जीवन ऊर्जा सृष्टि निर्माण के सौंदर्य में मितव्यता से व्यय हो । मार्ग मुझको तू दिखाये "मैं" तेरा अनुरागी बन कर निर्वाण पथ में लय हो । #पंछी #पाठक #हरे कृष्ण #श्रीमद्भगवद्गीता
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गीता स्पष्ट कह रही है कि जो जन्म लेता है, वह मरता है। आपके सम्बन्धों का भी प्रकृति में कोई अर्थ नहीं है। अर्जुन को कृष्ण कह रहे हैं कि तू चाहे इनको मार या नहीं मार, मैं इनको पहले ही मरा हुआ देख रहा हूं। अत: मृत्यु का शोक करना उचित नहीं है। तू क्षत्रिय है,युद्ध करना तेरा धर्म है। गीता ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का एक इकाई रूप में वर्णन किया है जो अन्यत्र नहीं मिलता। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक पुरुष है, शेष प्रकृति है। सत-रज-तम तथा वर्णाश्रम में सम्पूर्ण प्रकृति बंटी हुई है। पुरुष वीर्य रूप वर्ण-अहंकृति है। प्रकृति त्रिगुणात्मक है-आकृति है। अन्न-कर्म, यज्ञ, दान, तप सभी तो त्रिगुणात्मक है। अर्थात्-हम प्रकृति के बाहर जी ही नहीं सकते। जन्म, कर्म, मृत्यु सब प्रकृति दत्त हैं। वर्णाश्रम की ऐसी प्राकृतिक विवेचना भी अन्यत्र नहीं मिलती। देव-मनुष्य-पशु-पक्षी-वनस्पति और यहां तक कि असंज
गीता ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का एक इकाई रूप में वर्णन किया है जो अन्यत्र नहीं मिलता। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक पुरुष है, शेष प्रकृति है। सत-रज-तम तथा वर्णाश्रम में सम्पूर्ण प्रकृति बंटी हुई है। पुरुष वीर्य रूप वर्ण-अहंकृति है। प्रकृति त्रिगुणात्मक है-आकृति है। अन्न-कर्म, यज्ञ, दान, तप सभी तो त्रिगुणात्मक है। अर्थात्-हम प्रकृति के बाहर जी ही नहीं सकते। जन्म, कर्म, मृत्यु सब प्रकृति दत्त हैं। वर्णाश्रम की ऐसी प्राकृतिक विवेचना भी अन्यत्र नहीं मिलती। देव-मनुष्य-पशु-पक्षी-वनस्पति और यहां तक कि असंज #शिक्षा #पंछी #पाठक #हरे #श्रीमद्भगवद्गीता
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ अर्थात् तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं | #श्रीकृष्ण #श्रीमद्भगवद्गीता
अमित
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।। ---श्रीभगवानुवाच (श्रीमद्भगवद्गीता○||२.५०||) ©अमित #श्रीमद्भगवद्गीता #श्रीभगवानुवाच #योग #कर्म #कौशल #अमित_निश्छल
AJAY KALAWATIA
#श्रीमद्भगवद्गीता प्रथम अध्याय प्रथम श्लोक Most VIP Facts SARAT ADHIKARY Suman Zaniyan Most VIP Facts SARAT ADHIKARY Suman Zaniyan #समाज
read moreAnand Kushwaha
संसार की समस्त परिस्थितियां आने - जानेवाली , मिलने बिछुड़ने वाली हैं। मनुष्य यह चाहता है कि सुखदायक परिस्थिति बनी रहे और दुखदायक परिस्थिति न आए। परन्तु सुखदायक परिस्थिति जाती ही है और दुखदायक परिस्थिति आती ही है। यह प्रकृति का नियम है अथवा प्रभु का मंगलमय विधान है। अतः साधक को प्रत्येक परिस्थिति प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करनी चाहिए। । श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय दो #श्रीमद्भगवद्गीता #Nojoto
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