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#sParihar

मन की रैलगाड़ी.... #poem

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सबको अपने घर... गाँव... और दूर-दूर तक पहुँचाती है 
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है
कभी आवाज करके जोरों की... बहुत खूब डराती है
निकले बगल से... सब डर जायें...ऐसी सीटी बजाती है
कभी आराम से निकलकर... आगे ही चली जाती है
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है

कभी समय पर... कभी देर ही... पर जरूर आ जाती है
आकर हम सबके मन में... जाने की उम्मीद जगाती है
कभी-कभी देरी से आकर... समय पर पहुंचाती है 
पहुंचे सब.. जहां जाना हो... यही आस दिखलाती है
बैठकर गाड़ी में फिर सब यात्री... यही बात दोहराते हैं
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है

सफर यहाँ का सबको भाता... और सुकून दे जाता है
तेज चलना इसका अंदाज... सबको ही रास आता है
अगर थोड़ा भी निर्देश... रास्ता खाली मिले तो 
बहुत तेज.. शांति से चलकर... समय रहते पहुँचाती है
पर रास्ता व्यस्त हुआ तो... फिर सबको बहुत रुलाती है
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है 

कम खर्च में इतनी सुविधा... भला कौन दे जाता है? 
सभी यात्रियों का ठीक से ध्यान भला कौन रख पाता है 
कभी हमारी लापरवाही... हमपे ही भारी पड़ जाती है
थोड़ी जल्दबाजी करने से एक बड़ी दुर्घटना हो जाती है 
चलें थोड़ा ध्यानपूर्वक... ताकि अनहोनी ना होने पाए
समय पर पहुचें सब... बस यही बात याद दिलाती है
छुक-छुक करती छक-छक करती रेलगाड़ी आ जाती है मन की रैलगाड़ी....

LAKSHMI KANT MUKUL

memory of childhood #कविता

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छोटी लाइन की छुक-छुक गाड़ी
बचपन में एक्का पर जाते हुए ननिहाल
मन ही मन दुहराते थे की अब आया मामा का गाँव
रास्ते में दिखती थीं छोटी लाइन की पटरियां
बताती थीं माँ-‘तेरे मामा इसी छुक-छुक गाडी में आते थे पटना से’ memory of childhood

K F RANA

#2YearsOfNojoto जैसे ही रात ने अँगड़ाई लेनी शुरू की ट्रेन में भी सन्नाटा छाने लगा देखते ही देखते पूरे ही डब्बे में नींद अपना कब्जा कर चुकी थी और केवल ट्रेन की छुक छुक की आवाज़ बाकी रह गयी थी। उसी सन्नाटे में मेरी कलम  चीखने लगी हर सोये कान पे बारी बारी से दस्तक देने लगी मगर नींद के आगे उसकी एक ना चली बेचारी थक कर अपने मयार में वापस आगयी।उस रात में मेरा हमसफ़र बस अकेला एक चना बना 
मैंने- उससे कहा मेरे साथी बनोगे!
.................. #NojotoQuote #nojotohindi

KUNWARKARNI.01

अलविदा कहे उसको जमाना हो गया.. लेकिन मेरे कानो से अब तक.. रेल कि छुक-छुक नहीं जाती #शायरी #nojotovideo #kUNWARKARNI

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Omkar Sharma

#मासूम #HindiPoem #Omkarsharma omkarsharmablog.wordpress.com #कविता

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मासूम  हाँ मासूम था बचपन मेरा,
छुक छुक गाड़ी की रेल,
खेले कई खेल,
खेल खेल में, 
शादी भी कर लिया करता था
और बाँध लिया करता था सेहरा! #मासूम #hindipoem #Omkarsharma 
omkarsharmablog.wordpress.com

Peeyush Umarav

कितना आसान था बचपन का वो खेल, छुक छुक चलती जैसे रेल, गुड्डा मेरा बनता दूल्हा, गुड्डन उनकी बनती दुल्हन, मैं घर सजाता, खूबसूरत परी को लाता, बैठा उसको प्यार से, गुड्डे से बातें कराता, दोनों मिल घर चलाते, पहिए घर की गाड़ी के चलते जाते, जैसे स्वर्ग से सुंदर संसार का मेल था, #Love #शादी #shadi #Dahej #bitiya #laado #dowery #Merriage

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कितना आसान था बचपन का वो खेल,
छुक छुक चलती जैसे रेल,
गुड्डा मेरा बनता दूल्हा, गुड्डन उनकी बनती दुल्हन,
मैं घर सजाता, खूबसूरत परी को लाता,
बैठा उसको प्यार से, गुड्डे से बातें कराता,
दोनों मिल घर चलाते, 
पहिए घर की गाड़ी के चलते जाते,
जैसे स्वर्ग से सुंदर संसार का मेल था,
कितना आसान बचपन का वो खेल था,

पर अब गुड्डन मेरी बड़ी हो गई,
वो छोटी प्यारी, अपने पैरों पर भी खड़ी हो गई,
गुड्डा उनका है अब, वो भी हो गया सयाना,
खेल का बदला सा है पैमाना,

अब कहते हैं ये खेल नहीं,बिन पैसे के कोई मेल नहीं,
मेरी गुड्डन क्या खाली हाथ घर जाएगी,
अंजाम पड़ोसी को क्या मुंह दिखाएगी,
पढ़ा–लिखा कोई क्या एहसान किया,
गुड्डा है उनका, भगवान ने उनको इनाम दिया,
अब गुड्डे का घर भी हमें सजाना है, लाली का ब्याह रचाना है,
दिल कहता है, 
शायद नहीं मिलेगा अब वैसा गुड्डे गुड़िया का मेल, 
कितना आसान था बचपन का वो खेल,
कितना आसान था बचपन का वो खेल..

Peeyush Umarav #NojotoQuote कितना आसान था बचपन का वो खेल,
छुक छुक चलती जैसे रेल,
गुड्डा मेरा बनता दूल्हा, गुड्डन उनकी बनती दुल्हन,
मैं घर सजाता, खूबसूरत परी को लाता,
बैठा उसको प्यार से, गुड्डे से बातें कराता,
दोनों मिल घर चलाते, 
पहिए घर की गाड़ी के चलते जाते,
जैसे स्वर्ग से सुंदर संसार का मेल था,

अरमान

छुक छुक की आवाज़ और ठंडी हवाओ का शोर बस इसके अलावा कोई आवाज़ नही बिल्कुल सन्नाटा छाया , सुकून था ,इन अंधेरो मे  कानों मे हल्की आवाज़ 90 के दशक के गानो की और तुम्हारा ख्याल रूह को ताज़ा कर रही थी, तुम्हारे साथ बिताये हुए पल होठो पे मुस्कान दे रही थी, वो तुम्हारा चेहरा इन अंधेरो मे भी बहुत साफ झलक रहा था ऐसे लग रहा तुम सामने ही हो बस सामने जैसे मै तुम्हे अभी छु सकता हूँ, तुम्हे गले लगा के इन ठंडी हवाओ को खुद से दूर कर सकता हूँ , नोक झोक कितना करते थे वो नोक झोक सन्नाटे को चीरते हुए कानों मे लग रही तुम्हारी नामौजूदगी का एह्साह दिला रही , इस भीड़ मे खुद को अकेला समझ रहा ,इन लोगों के बीच खुद को तन्हा समझ रहा , तेज़ रफ्तार मे खुद को धीमा कर रहा हूँ 
नींद आंखों मे है पर तुम्हारे इंतेजार मे ये झपक नही रही शायद इन्हें अभी मालूम नही तुम्हारे बारे मे ,तुम कितनी जिद्दी हो कितनी झल्ली हो 
तुम नही आओगे अब ,
मेरे साथ मेरे सफर मे.....
.
तन्हा था तन्हा इश्क़ हुआ
अब गम कैसा जब  हमसफर तन्हा हुआ.....

#सफर #सफर #छुक #छुक #तुम #ठंडी #हवा #अरमान


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